मंगलवार, 10 मई 2016

अरे भाई क्या तुम भी राव जोधा की तरह महामूर्ख हो

गांवों में अक्सर एक साधारण सा आदमी जिसने न तो पढ़ाई लिखाई की हो और न ही कहीं बाहर घुमा हो, किसी बड़े मुद्दे पर एक छोटी सी बात बोलकर इतनी बड़ी सलाह दे जाता है कि सम्बंधित विषय के बड़े-बड़े जानकार भी सुन कर चकित हो जाते है, उसकी छोटी सी चुटीली बात में भी बहुत बड़ा सार छुपा होता है | मै यहाँ एक ऐसी ही छोटी सी बात का जिक्र कर रहा हूँ जिस बात ने अपने खोये पैत्रिक राज्य को पाने के लिए संघर्ष कर रहे एक राजा का इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि वह इस छोटी बात से सबक लेकर अपनी गलती सुधार अपना पैत्रिक राज्य पाने में सफल हुआ |
मै यहाँ जोधपुर के संस्थापक राजा राव जोधा की बात कर रहा हूँ | यह बात उस समय की जब राव जोधा के पिता और मारवाड़ मंडोर के राजा राव रिड़मल की चित्तोड़ में एक षड़यंत्र के तहत हत्या कर मेवाड़ी सेना द्वारा मंडोर पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया गया | मंडोर उस समय मारवाड़ की राजधानी हुआ करती थी | राव जोधा ने अपने भाईयों के साथ मिलकर अपने पिता के खोये राज्य को पाने के लिए कई बार मंडोर पर हमले किए लेकिन हर बार असफल रहा |
उसी समय राव जोधा मेवाड़ की सेना से बचने हेतु एक साधारण किसान का वेश धारण कर जगह-जगह घूम कर सेन्ये-संसाधन इक्कठा कर रहे थे | एक दिन कई दूर चलते-चलते घुमते हुए भूखे प्यासे हताश होकर राव जोधा एक जाट की ढाणी पहुंचे, उस वक्त उस किसान जाट की पत्नी बाजरे का खिचड़ा बना रही थी,चूल्हे पर पकते खिचडे की सुगंध ने राव जोधा की भूख को और प्रचंड कर दिया | जाटणी ने कांसे की थाली में राव जोधा को खाने के लिए बाजरे का गरमा -गर्म खिचड़ा परोसा | चूँकि जोधा को बड़ी जोरों की भूख लगी थी सो वे खिचडे को ठंडा होने का इंतजार नही कर सके और खिचड़ा खाने के लिए बीच थाली में हाथ डाल दिया, खिचड़ा गर्म होने की वजह से राव जोधा की अंगुलियाँ जलनी ही थी सो जल गई | उनकी यह हरकत देख उस ढाणी में रहने वाली भोली-भाली जाटणी को हँसी आ गई और उसने हँसते हुए बड़े सहज भाव से राव जोधा से कहा -
" अरे भाई क्या तुम भी राव जो
धाकी तरह महामूर्ख हो " ?
राव जोधा ने उस स्त्री के मुंह से अपने बारे में ही महामूर्ख शब्द सुन कर पूछा - " राव जोधा ने ऐसा क्या किया ? और मैंने ऐसा क्या किया जो हम दोनों को आप महामूर्ख कह रही है "?
तब खेतों के बीच उस छोटी सी ढाणी में रहने वाली उस साधारण सी स्त्री ने फ़िर बड़े सहज भाव से कहा-- " जिस प्रकार राव जोधा बिना आस-पास का क्षेत्र जीते सीधे मंडोर पर आक्रमण कर देता है और इसी कारण उसे हर बार हार का मुंह देखना पड़ता है, ठीक उसी तरह मेरे भाई तुमने भी थाली में किनारे ठंडा पड़ा खिचड़ा छोड़कर बीच थाली में हाथ डाल दिया, जो जलना ही था |इस तरह मेरे भाई तुमने भी राव जोधा की तरह उतावलेपन का फल हाथ जलाकर भुक्ता |
उस साधारण सी खेती-बाड़ी करने वाली स्त्री की बात जो न तो राजनीती जानती थी न कूटनीति और न युद्ध नीति ने राव जोधा जैसे वीर पुरूष को भी अपनी गलती का अहसास करा इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि राव जोधा ने उसकी पर अमल करते हुए पहले मंडोर के आस-पास के क्षेत्रों पर हमले कर विजय प्राप्त की और अंत में अपनी स्थिति मजबूत कर मंडोर पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर अपना खोया पैत्रिक राज्य हासिल किया, बाद में मंडोर किले को असुरक्षित समझ कर राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव डाल अपने नाम पर जोधपुर शहर बसाया

The truth of Mughal-Rajput marital relationship

आदि-काल से क्षत्रियों के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्व को चुनौती देते आये है। किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलतापूर्वक करते रहे है। कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था, क्षत्रियों से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रों को रचते रहे। कुरुक्षेत्र के महाभारत में जब अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली, उसके बाद से ही क्षत्रिय इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया। इतिहास में क्षत्रिय शत्रुओं को महिमामंडित करने का भरसक प्रयास किया गया ताकि क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जा सके। किन्तु जिस प्रकार हीरे के ऊपर लाख धूल डालने पर भी उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती, ठीक वैसे ही क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा। फिर धार्मिक आडम्बरों के जरिये क्षत्रियों को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ, जिसमंे शत्रओं को आंशिक सफलता भी मिली। क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए क्षत्रिय इतिहास को कलंकित कर क्षत्रियों के गौरव पर चोट करने की दिशा में आमेर नरेशों के मुगलों से विवादित वैवाहिक सम्बन्धों (Amer-Mughal marital relationship) के बारे में इतिहास में भ्रामक बातें लिखकर क्षत्रियों को नीचा दिखाने की कोशिश की गई। इतिहास में असत्य तथ्यों पर आधारित यह प्रकरण आमजन में काफी चर्चित रहा है।


इन कथित वैवाहिक संबंधों पर आज अकबर और आमेर नरेश भारमल की तथाकथित बेटी हरखा बाई (जिसे फ़िल्मी भांडों ने जोधा बाई नाम दे रखा है) के विवाह की कई स्वयंभू विद्वान आलोचना करते हुए इस कार्य को धर्म-विरुद्ध और निंदनीय बताते नही थकते। उनकी नजर में इस तरह के विवाह हिन्दू जाति के आदर्शों की अवहेलना थी। वहीं कुछ विद्वानों सहित राजपूत समाज के लोगों का मानना है कि भारमल में अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अकबर से अपनी किसी पासवान-पुत्री के साथ विवाह किया था। चूँकि मुसलमान वैवाहिक मान्यता के लिए महिला की जाति नहीं देखते और राजपूत समाज किसी राजपूत द्वारा विजातीय महिला के साथ विवाह को मान्यता नहीं देता। इस दृष्टि से मुसलमान, राजा की विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को उसकी संतान मानते है। जबकि राजपूत समाज विजातीय महिला द्वारा उत्पन्न संतान को राजपूत नहीं मानते, ना ही ऐसी संतानों के साथ राजपूत समाज वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते है। अतः ऐसे में विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को पिता द्वारा किसी विजातीय के साथ ब्याहना और उसका कन्यादान करना धर्म सम्मत बाध्यता भी बन जाता है। क्योंकि यदि ऐसा नही किया गया जाता तो उस कन्या का जीवन चौपट हो जाता था। वह मात्र दासी या किसी राजपूत राजा की रखैल से ज्यादा अच्छा जीवन नहीं जी सकती थी।

भारमल द्वारा अकबर को ब्याही हरखा बाई का भी जन्म राजपूत समाज व लगभग सभी इतिहासकार इसी तरह किसी पासवान की कोख से मानते है। यही कारण है कि भारमल द्वारा जब अकबर से हरखा का विवाह करवा दिया तो तत्कालीन सभी धर्मगुरुओं द्वारा भारमल के इस कार्य की प्रसंशा की गयी। इसी तरह का एक और उदाहरण आमेर के इतिहास में मिलता है। राजा मानसिंह द्वारा अपनी पोत्री (राजकुमार जगत सिंह की पुत्री) का जहाँगीर के साथ विवाह किया गया। जहाँगीर के साथ मानसिंह ने अपनी जिस कथित पोत्री का विवाह किया, उससे संबंधित कई चौंकाने वाली जानकारियां इतिहास में दर्ज है। जिस पर ज्यादातर इतिहासकारों ने ध्यान ही नहीं दिया कि वह लड़की एक मुस्लिम महिला बेगम मरियम की कोख से जन्मी थी। जिसका विवाह राजपूत समाज में होना असंभव था।


कौन थी मरियम बेगम
इतिहासकार छाजू सिंह के अनुसार ‘‘मरियम बेगम उड़ीसा के अफगान नबाब कुतलू खां की पुत्री थी। सन 1590 में राजा मानसिंह ने उड़ीसा में अफगान सरदारों के विद्रोहों को कुचलने के लिए अभियान चलाया था। मानसिंह ने कुंवर जगत सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजी। जगतसिंह का मुकाबला कुतलू खां की सेना से हुआ। इस युद्ध में कुंवर जगतसिंह अत्यधिक घायल होकर बेहोश हो गए थे। उनकी सेना परास्त हो गई थी। उस लड़की ने जगतसिंह को अपने पिता को न सौंपकर उसे अपने पास गुप्त रूप से रखा और घायल जगतसिंह की सेवा की। कुछ दिन ठीक होने पर उसने जगतसिंह को विष्णुपुर के राजा हमीर को सौंप दिया। कुछ समय बाद कुतलू खां की मृत्यु हो गई। कुतलू खां के पुत्र ने मानसिंह की अधीनता स्वीकार कर ली। उसकी सेवा से प्रभावित होकर कुंवर जगतसिंह ने उसे अपनी पासवान बना लिया था। प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘दुर्गेशनंदिनी’’ में कुंवर जगतसिंह के युद्ध में घायल होने व मुस्लिम लड़की द्वारा उसकी सेवा करने का विवरण दिया है। लेकिन उसने उस लड़की को रखैल रखने का उल्लेख नहीं किया। कुंवर जगतसिंह द्वारा उस मुस्लिम लड़की बेगम मरियम को रखैल (पासवान) रखने पर मानसिंह कुंवर जगतसिंह से अत्यधिक नाराज हुए और उन्होंने उस मुस्लिम लड़की को महलों में ना प्रवेश करने दिया, ना ही रहने की अनुमति दी। उसके रहने के लिए अलग से महल बनाया। यह महल आमेर के पहाड़ में चरण मंदिर के पीछे हाथियों के ठानों के पास था, जो बेगम मरियम के महल से जाना जाता था। कुंवर जगतसिंह अपने पिता के इस व्यवहार से काफी क्षुब्ध हुये, जिसकी वजह से वह शराब का अधिक सेवन करने लगे। मरियम बेगम ने एक लड़की को जन्म दिया। कुछ समय बाद कुंवर सिंह की बंगाल के किसी युद्ध में मृत्य हो गई। इस शादी पर अपनी पुस्तक ‘‘पांच युवराज’’ में लेखक छाजू सिंह लिखते है ‘‘मरियम बेगम से एक लड़की हुई जिसकी शादी राजा मानसिंह ने जहाँगीर के साथ की। क्योंकि जहाँगीर राजा का कट्टर शत्रु था, इसलिए उसको शक न हो कि वह बेगम मरियम की लड़की है, उसने केसर कँवर (जगतसिंह की पत्नी) के पीहर के हाडाओं से इस विवाह का विरोध करवाया। किसी इतिहासकार ने इस बात का जबाब नहीं दिया कि मानसिंह ने अपने कट्टर शत्रु के साथ अपनी पोती का विवाह क्यों कर दिया? जबकि मानिसंह ने चतुराई से एक तीर से दो शिकार किये- 1. मरियम बेगम की लड़की को एक बड़े मुसलमान घर में भी भेज दिया। 2. जहाँगीर को भी यह सन्देश दे दिया कि अब उसके मन में उसके प्रति कोई शत्रुता नहीं है। जहाँगीर के साथ जगतसिंह की मुस्लिम रखैल की पुत्री के साथ मानसिंह द्वारा शादी करवाने का यह प्रसंग यह समझने के लिए पर्याप्त है कि इतिहास में मुगल-राजपूत वैवाहिक संबंध में इसी तरह की वर्णशंकर संताने होती थी, जिनका राजपूत समाज में वैवाहिक संबंध नहीं किया जा सकता था। इन वर्णशंकर संतानों के विवाहों से राजा राजनैतिक लाभ उठाते थे। जैसा कि छाजू सिंह द्वारा एक तीर से दो शिकार करना लिखा गया है। एक अपनी इन संतानों को जिन्हें राजपूत समाज मान्यता नहीं देता, और उनका जीवन चौपट होना तय था, उनका शासक घरानों में शादी कर भविष्य सुधार दिया जाता, साथ ही अपने राज्य का राजनैतिक हित साधन भी हो जाता था। इस तरह की उच्च स्तर की कूटनीति तत्कालीन क्षत्रिय समाज ने, न केवल समझी बल्कि इसे मान्यता भी दी। यही कारण है कि हल्दीघाटी के प्रसिद्द युद्ध के बाद भी आमेर एवं मेवाड़ के बीच वैवाहिक सम्बन्ध लगातार जारी रहे

तूं ठाकर दीवाण तूं, तो ऊभै सोह कज्ज। राज सिधारौ मालवे, करण मरण बळ लज्ज।।



कूंपौ कैवै-

राव मालदेव मारवाड़ रौ इज नीं महाराणा संग्रामसिंघ मेवाड़ रै पछै आखा राजस्थान रौ अेकलो अैड़ौ राजा हुवौ जिकौ दिल्ली रा बादसा सेरसाह सूं खंवांठौरी किवी। भटभेड़ी लिवी। राव मालदेव रौ संवत 1568 में जळम हुवौ नै 1588 में जोधपुर री गादी माथै बैठियौ। उण समै जोधपुर रै हेटै सोजत अर जोधपुर दो इज पड़गना हा। मारवाड़ रा पौकरण, फळोधी, बाड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाणा, मेड़ता, नागौर आद आखा पड़गनां में आपरै आपेधापे रा राजा, राव, नबाब राजा हा। मालदेव रौ राज उण समै जाबक छोटौ-सौ हुंतौ। सगळा आपैथापै राजा बणिया राज करता। कोई किणी रौ ग्यान गिंनार नीं करतौ। केन्द्रबळ रै रूप में कठैई सकती रौ जोड़-तोड़ नीं हौ। राव मालदेव नै मारवाड़ रा बीजा भाई बंध सासकां रो मनमता पणौ अबखौ लखायौ। नै गादी पर बैठतां ई मालदेव सगळां सूं पैली आपरा गोतर भाई राठौड़ां में जिका री थोड़ीघणी लोळ उणा रै साथ लखाई सांकड़ा लिया। आप री सेना रौ संगठण कियौ। विरोध राखण वाळां माथै सनी दीठ पड़ी। सगळां सूं पैली भादराजूण पर धावौ मार उण नै जोधपुर नीचे घाली। पछै कांकड़ सींवाळी रा अड़सगारा मेड़ता रा दूदावतां रै लार हुवौ। मेड़ता रौ धणी राव वीरमदे भी आग रौ पूळौ, बूंदी रा झाड़ां रौ बाघ, इंदर रौ बजराक, संकर रौ तीजौ नेतर, दु्रवासा रौ कोप नै भीम रा आपांण रौ सांपरत मूरत हो। रहणी-कहणी रौ खरौ नै खारौ। पछै कांई ढील। पाथर सूं पाथर भिड़ै जद तौ आग इज निकलै। जोधपुर नै मेड़तौ बेहूं कैरव पखधारी करण नै पांडूपूत अरजण रै लगैढगै। जैड़ा राव वीरमदेव रा जोधा रायमल, रायसल, ईसरदास, जयमल्ल, वीठळदास, सांवळदास नै अरजण उणी भांत रा राव मालदेव रा पखधर राव जैतौ, कूंपौ, रतनसी, पंचायण, अखैराज, प्रथीराज, देईदास, मेघराज अेक सूं अेक आगळा। रण रा रसिया। काळी रा कळस। जमराज रा जेठी जिका औसर माथै नीं तांणै हेटी। जमदूत रै इज ठोकै भेटी। सांस रा सहायक। सैणां रा सैण। खळां रा खोगाळ। रण भारथ रा भोपाळ। सिंघ री झपट, बाराह री टूंड री टक्कर। संपा रा सळाव री भांत दुसमणां रै माथै बजराक गैरबा में सैंठा।


मेड़ता री रणभौम में हजारां जोधारां री मुंडकियां थळी रा मतीरां ज्यूं गुड़ी। हजारां घोड़ां हाथियां रौ कचरघांण हुवौ। राव मालदेव जीतिया। मेड़़तिया हारिया। पछै राव मालदेव री सेना मेड़ता सूं धकै बध नै अजमेर माथै भी आपरौ हांमपाव कियौ। मारवाड़ में नागौर पर जद खानजादां रो राज हुंतौ। राव मालदेव नागौर नै जीतण रा ताका मौका जोवै इज हौ। नागौर रौ खान राव मालदेव रा भावंडा रा थाणायत माथै धावौ मार नै उणनै मार लियौ। पछै कांई हौ। ऊंधे ही नै बिछायो लाधौ। आपरा सेनापति कूंपा नै मेल नै खान नै पछाड़ अर नागौर दाब लिधी। सीवाणा रा धणी डूंगरसी नै तौ आघौ ताड़ियौ नै सीवाणा रा किला नै पड़गना नै भी मारवाड़ रै दाखल कियौ। सीवाणा पछै जालौर री सायबी भी सिकन्दरखां नै खोड़ा में घाल खोस लिवी।

राव मालदेव इण भांत जोधपुर रा आड़ौस-पाड़ौस रा सासकां नै ठौड़ ठिकाणै लगा, उणा रौ राज खोस अर पछै बीकानेर माथै घोड़ा खड़िया। घणा जबरा राटाका रै पछै बीकानेर रा धणी जैतसी नै रण सैज पौढ़ाय बीकानेर माथै भी आपरौ कबजौ जमायौ।

अठी नै तो राव मालदेव मारवाड़ माथै एक छत्र राज जमा रियौ ही अर उठी नै दिल्ली में मुगल पातसाह हुमायूं नै रणखेत में पछाड़नै अफगान सेरसाह सूर दिल्ली में तप रियौ हौ। सेरसाह सूरवीरता में सम्रथ। न्याव में नौसेरवां रौ औतार। पाणी पैली पाळ बांधै जैड़ौ। मालदेव रै प्रताप री बातां सांभळ नै मालदेव रा दोखी राव वीरमदेव अर राव कल्याणमल बीकानेरिया नै छाती लगाया। पछै अस्सी हजार घोड़ां री, हाथियां री, तोपखानां री फौज सजा मारवाड़ पर धारोळियौ। राव मालदेव भी आपरी रण बंकी सेना रा साठ हजार घोड़ा लेय नै सांमै चढ़ियौ। अजमेर री पाखती गिरी समेल कनै दोना फौजां रा डेरा हुवा। म्हीनै खांड ती फौजां आमनै-सामनै डेरा रोपियां पड़ी रैयी। पछै अेक दिन आखतौ व्हैने वीरवर कूंपै राव मालदेव नै राड़ रा चौगान सूं काढ़ नै जोधपुर भिजवा दियौ। कैंणगत है- लाख मरौ पण लाख नै पोखाणियौ नीं मरौ। सो, जबरा-जबरी राव मालदेव नै कूंपै समेल सूं जोधपुर भेज दियौ। साख रौ दूहौ है-

कूंपौ कैवै-

तूं ठाकर दीवाण तूं, तो ऊभै सोह कज्ज।
राज सिधारौ मालवे, करण मरण बळ लज्ज।।


राजा जी थां जीवै सारा थोक है। थां राठौडां रा धणी हौ। इण वास्तै राड़ सूं निकळ परा जावौ नै जुद्ध री लाज नै भरभार कूंपा पर छोड़ो।
पछै राठौड़ जैतो, राठौड़ कूंपौ, राठौड़ ऊदौ जैतावत, खींवौ ऊदावत, पंचायण करमसोत, जैतसी ऊदावत, जोगौ अखैराजोत, वीदौ भारमलोत, भोजराज पंचायणोत, अखैराज सोनगिरौ, हरपाळ जोधावत आद राव मालदेव रा बतीस उमराव आपरी बीस हजार फौज साथ ले सेरसाह री अस्सी हजार सेना सूं जाय भेटी खायी। पातसाही फौज नै रोदळ नै कण-कण री बखेर दिवी। राव मालदेव रा घना जोधार काम आया। अेक बीजो सौ महाभारत हुवौ। मिनखां, घोड़ां नै हाथियां रा धड़ां, पिंडा, चुळियां, नळियां, मुंडा, कबंधा रा पंजोळ लाग गया। राठौड़ रण सागर नै मचोळ नै काम आया। दिल्ली मंडळ रौ धणी रण रौ चकाबौ देख नै कैयो- अेक मूठी बाजरी रै खातर दिल्ली री सायबी खोइज ही।

राव मालदेव रा जोधारां रै रण रा चित्राम कवीसरां घण कोरिया है। राव अखैराज सोनगरा रै जुद्ध नै धाकड़ कबड्ड़ी री संग्या देवतै थकै कैयौ है-
फुरळंतां फौजांह, ढालां गयंद ढढोळतां।
रमियौ सर रौदांह, धाकड़ कबड्डी धीरउत।।

राठौड़ नगौ भारमलोत तौ सांप्रत काळौ नाग इज हुंतौ। उण री तरवार रौ डंक लागै पछै जीवणौ दूभर, फेर भी वौ दुसमण रूपी गारुड़ी रै बंधाण में नी आयौ-
देव न दांणव दीठ, अरक कहै भड़ अेहवौ।
नगियौ काळौ नाग, गारूड़वां ग्रहिजै नहीं।।
धावां सूंछक नै नगौ रण पड़ियौ, पण जीवतौ बचियौ।


समेळ रौ झगड़ौ मारवाड़ में वड़ी लड़ाई रै नांव सुं ओळखीजै। इण राड़ में राव मालदेव रा घणा जोधार काम आया। पछै सेरसाह समेळ सूं कूचकर मेड़ता अर जोधपुर माथै आयौ। जोधपुर रा किला नै फतै कर पाछौ गयौ। पण मालदेव निचलौ बैठणियौ नीं हौ। सेरसाह रै फोत हुंवतांई पाछौ जोधपुर आय दाबियौ। आप री फौज पाछी बणाई। जुद्ध रा साज सामान, घोड़ा रजपूत सिलह बणाय नै अजमेर पर काटकियौ। अजमेर माथै हाजीखां पठाण राज करै। हाजीखां आपरै बळू मेड़ता रा धणियां अर मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ नै बुलायौ। अठी नै प्रथीराज जैतावत नै सेनानायक बणाय राव मालदेव अजमेर माथै फौज मेली। अैड़ै समै में प्रथीराज नै अजमेर पर मोकळती वेळां कैयौ-

पीथा पांणेजेह, आळोजे कहियौ इसौ।
भुइ ताहरे भुजेह, जैत तणा जोधां तणी।।

राव मालदेव विचार करती थकौ कैयौ- हे प्रथीराज जैतावत ! जोधां री औलाद री आ मारवाड़ री भौम थांरै इज भुजपांण माथै है।
एक दळ आहाड़ांह, दळ एक दुरवेसां तणा।
मांही भेड़तियाह, कळि करतां त्रीजोइ कटक।।


अजमेर में प्रथीराज घणौ पराक्रम दिखायौ। राव मालदेव री बात राखी। पछै वि. सं. 1610 में मेड़ता में राव जयमल रै साथ रै जुद्ध में बाज मुवौ। प्रथीराज रै काम आयां पछै राव मालदेव आपरौ सेनापत पणौ प्रथीराज रा छोटा भाई देईदास जैतावत नै सौंपियौ। देईदास राव मालदेव रौ सेनापत बण घणां-घणां धौंकळ किया। सं. 1616 में जाळौर माथै फौजकसी करी। जालौर रा पठाण धणी मलिक बूढण ‘मलिकखां बिहारी नै हराय नै जाळौर नै जोधपुर नीचे घाली। पछै बादसाह अकबर आपरा सेनानायक सरफुदीन हुसैन मिर्जा नै राव जैमल री मदत मेड़ता माथै मेलियौ। देईदास, मेड़तिया जैमल अर उण री पक्ष री बादसाही सेना सूं भिड़ गयौ। महाभयांणक राड़ी हुवौ। घणा लड़ेता खेत रैया। कह्यौ है-

विगतौ करे व्रहास, ढालां मुडै ढोईयौ।
दुसासण दहु चहु दळे, दीठौ देवीदास।।
कळळियौ कविलास, समहर किरमाळां सरस।
जैत समोभ्रम जागियौ, दणियर देवीदारा।।
तूं तेजीयै सपताास, भीड़ै जुध करिबा भणी।
सातै हींसारव हुवै, दीपै देवीदास।।


दुसासण रै समान वीरता प्रगट करतौ देईदास वैरियां रा दळां में ओपियौ। राव जैता रौ कुळोधर देईदास सत्रु सेना रूपी अंधेरा नै नासतौ सूरज री भांत दीखियौ। देईदास रै घोड़ा रै हींसारव री हणहणाट सातौं दीपां में सुणीजी। अैड़ौ पराक्रम धणी देईदास जैतावत राव मालदेव निमत मेड़तै काम आयौ। राजस्थान में राव मालदेव एक अजोड़ राजा हुवौ। दिल्ली रा अफगान नै मुगल पातसाहां री सेना सूं लोह रटाका लिया। मरु देस री सीमावां रो घणौ विस्तार कियौ। रात दिन खेड़-खेटा करतौ थकौ भी कदै निरास नै उदास नीं हुवौ।

राव मालदेव जुद्ध इज नीं लड़िया मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ गढ़-कोटां, जीवरखां रा भी घणा निर्माण किया। प्रजा रै खातर कूवा-बावड़ियां खिंणाई। उण री सखरी प्रत पाळणा किवी। जद ई तौ राजस्थान रा ख्यातकारां राव मालदेव नै मंडळीक राजा, हिन्दुवां रौ पातसाह कैय नै चितारियौ है। कवि आसौ बारहठ राव मालदेव रै पुरसारथ रौ वरणन करते थकै कैयौ है-

कवण क्रिसन पति सबळ, काळ पति कवण अंगजित।
प्रिथीपत कंुण बाणपत, सुरपत कवण सतेजति।।
कवण नाथपति जीत, कवण केसवपति दाता।
सीतापति कुण सीत, कवण लखमण पति भ्राता।।
सबळ को अवर सूझै नहीं, जाचिग जंपै सयल जण ।
हिन्दुवां मांहि ओ हिन्दुवौ, मालपति मोटौ कवण।।


इण संसार में अगन सूं बढ नै सबळ कुंण हुवौ है। जमराज रै बिना अगंजित कुंण है। धनखधर अरजण सूं पराक्रम बळी कुंण हुवौ है। देवपति इन्द्र सूं ज्यादा वडौ राजा कुंण है। गोरखनाथ रै सिवाय वडौ जति कुंण हुवौ, भगवान् केसोराय सूं इधकौ दातार कुंण नै सीतामाता जैड़ी सती नै लिछमण सरीखौ भाई बीजौ कुंण हुवौ। इणां रै जोड़ रौ राव मालदेव रै बिना दूजौ कोई हिन्दूपति नीं दीखै।

राव मालदेव गादी बैठा जद फगत दोय पड़गनां रौ धणी ही अर पछै तैतीस पड़गना जीत नै मारवाड़ रा राज रौ बिस्तार कियौ। राव मालदेव जिका-जिका तुंबां पड़गना खाटिया उणा रा ख्यातां बातों में नांववार बखाण मिळे है। सुणीजै-

महि सोजत ली माल, भाल लियौ मेड़तौ।
माल लियौ अजमेर, सीम सांभर सहेतौ।।
बांको गढ़ बदनौर, माल लीधौ दळ मेले।
राइमाल रायपुर लियौ, भाद्राजण भेळे।।
नागौर निहचि चढ़ि नळै, खाटू लीधी खड़ग पणि।
तप पांण हुवौ गांगा तणौ, धींग मालदे सैंधणी।।
लोड लियौ लाडणूं, दुरंग लीधौ डिडवाणौ।
नयर फतैपुर नाम, आप वसि कियौ आपांणौ।।
कमधज लई कासली, रूक बळ लियौ रेवासौ।
चांप लई चाटसू, मुक्यौ वीरभाण मेवासौ।।
जड़ळग पण जाजपुर लियौ, गह छांडे कुंभौ गयौ।
मालदे लियौ मंदारपुर, लियौ टांक टोडो लियौ।।


इता ही इज नीं राव मालदेव सिवाणौ, जाळौर, सांचौर, भीनमाळ, बीकानेर फलोधी, पोकरण, उमरकोट, कोटडा़ै, बाड़मेर, चौहटण आड़ घणा पड़गना जीत नै मारवाड़ रै सामिळ किया।

मेवाड़ रा पासवानिया बणवीर नै चित्तौड़ सूं बारै काढ़ नै राणा उदैसिंघ नै चीतौड़ रौ घणी थरपबा में मदद दी, अर पछै जद राणौ उदैसिंघ पाछी आंख काढबा लाग्यौ जद कुंमलमेर अर हरमाड़ा में उण सूं भी भिड़बा में पाछ नीं राखी।

इणु भांत राव मालदेव आपरी आखी उमर जुद्धां रा नगारा बजावौ, सिंधूड़ा दूहा दिरावतौ रैयौ नै संवत 1616 में इण संसार में आपरी कीरत पाछै छोड़ नै
अठै सूं विदा होय सुरलोक रौ राह लियौ।
मालदेव रै मरण पर कह्यौ है-
असी सहस अस’बार, सहस मैंगल मैमंतां।
हाजी अली मसंद, दैत राकस देखतां।।
भांगेसर वासरहिं, चडे रिण वदृहि जोड़ै।
फतैखान सारिखा मेछ, भूअ डंडि मरोडै़।।
टहियो पिराक्रम आप बळि, सत दुरिक्ख रक्खी सरणी।
माणी न मल्ल ऊभै मुणिस, सूर मुरद्धर वर तरुणि।।


राजस्थान री सीमा बधाबा वाळौ नै उण री रुखाळ करण वाळौ मारवाड़ री धरती माथै बीजौ अैड़ो प्रतापीक धणी नीं जलमियौ


राजा जी थां जीवै सारा थोक है। थां राठौडां रा धणी हौ। इण वास्तै राड़ सूं निकळ परा जावौ नै जुद्ध री लाज नै भरभार कूंपा पर छोड़ो।
पछै राठौड़ जैतो, राठौड़ कूंपौ, राठौड़ ऊदौ जैतावत, खींवौ ऊदावत, पंचायण करमसोत, जैतसी ऊदावत, जोगौ अखैराजोत, वीदौ भारमलोत, भोजराज पंचायणोत, अखैराज सोनगिरौ, हरपाळ जोधावत आद राव मालदेव रा बतीस उमराव आपरी बीस हजार फौज साथ ले सेरसाह री अस्सी हजार सेना सूं जाय भेटी खायी। पातसाही फौज नै रोदळ नै कण-कण री बखेर दिवी। राव मालदेव रा घना जोधार काम आया। अेक बीजो सौ महाभारत हुवौ। मिनखां, घोड़ां नै हाथियां रा धड़ां, पिंडा, चुळियां, नळियां, मुंडा, कबंधा रा पंजोळ लाग गया। राठौड़ रण सागर नै मचोळ नै काम आया। दिल्ली मंडळ रौ धणी रण रौ चकाबौ देख नै कैयो- अेक मूठी बाजरी रै खातर दिल्ली री सायबी खोइज ही।

राव मालदेव रा जोधारां रै रण रा चित्राम कवीसरां घण कोरिया है। राव अखैराज सोनगरा रै जुद्ध नै धाकड़ कबड्ड़ी री संग्या देवतै थकै कैयौ है-
फुरळंतां फौजांह, ढालां गयंद ढढोळतां।
रमियौ सर रौदांह, धाकड़ कबड्डी धीरउत।।

राठौड़ नगौ भारमलोत तौ सांप्रत काळौ नाग इज हुंतौ। उण री तरवार रौ डंक लागै पछै जीवणौ दूभर, फेर भी वौ दुसमण रूपी गारुड़ी रै बंधाण में नी आयौ-
देव न दांणव दीठ, अरक कहै भड़ अेहवौ।
नगियौ काळौ नाग, गारूड़वां ग्रहिजै नहीं।।
धावां सूंछक नै नगौ रण पड़ियौ, पण जीवतौ बचियौ।


समेळ रौ झगड़ौ मारवाड़ में वड़ी लड़ाई रै नांव सुं ओळखीजै। इण राड़ में राव मालदेव रा घणा जोधार काम आया। पछै सेरसाह समेळ सूं कूचकर मेड़ता अर जोधपुर माथै आयौ। जोधपुर रा किला नै फतै कर पाछौ गयौ। पण मालदेव निचलौ बैठणियौ नीं हौ। सेरसाह रै फोत हुंवतांई पाछौ जोधपुर आय दाबियौ। आप री फौज पाछी बणाई। जुद्ध रा साज सामान, घोड़ा रजपूत सिलह बणाय नै अजमेर पर काटकियौ। अजमेर माथै हाजीखां पठाण राज करै। हाजीखां आपरै बळू मेड़ता रा धणियां अर मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ नै बुलायौ। अठी नै प्रथीराज जैतावत नै सेनानायक बणाय राव मालदेव अजमेर माथै फौज मेली। अैड़ै समै में प्रथीराज नै अजमेर पर मोकळती वेळां कैयौ-

पीथा पांणेजेह, आळोजे कहियौ इसौ।
भुइ ताहरे भुजेह, जैत तणा जोधां तणी।।

राव मालदेव विचार करती थकौ कैयौ- हे प्रथीराज जैतावत ! जोधां री औलाद री आ मारवाड़ री भौम थांरै इज भुजपांण माथै है।
एक दळ आहाड़ांह, दळ एक दुरवेसां तणा।
मांही भेड़तियाह, कळि करतां त्रीजोइ कटक।।


अजमेर में प्रथीराज घणौ पराक्रम दिखायौ। राव मालदेव री बात राखी। पछै वि. सं. 1610 में मेड़ता में राव जयमल रै साथ रै जुद्ध में बाज मुवौ। प्रथीराज रै काम आयां पछै राव मालदेव आपरौ सेनापत पणौ प्रथीराज रा छोटा भाई देईदास जैतावत नै सौंपियौ। देईदास राव मालदेव रौ सेनापत बण घणां-घणां धौंकळ किया। सं. 1616 में जाळौर माथै फौजकसी करी। जालौर रा पठाण धणी मलिक बूढण ‘मलिकखां बिहारी नै हराय नै जाळौर नै जोधपुर नीचे घाली। पछै बादसाह अकबर आपरा सेनानायक सरफुदीन हुसैन मिर्जा नै राव जैमल री मदत मेड़ता माथै मेलियौ। देईदास, मेड़तिया जैमल अर उण री पक्ष री बादसाही सेना सूं भिड़ गयौ। महाभयांणक राड़ी हुवौ। घणा लड़ेता खेत रैया। कह्यौ है-

विगतौ करे व्रहास, ढालां मुडै ढोईयौ।
दुसासण दहु चहु दळे, दीठौ देवीदास।।
कळळियौ कविलास, समहर किरमाळां सरस।
जैत समोभ्रम जागियौ, दणियर देवीदारा।।
तूं तेजीयै सपताास, भीड़ै जुध करिबा भणी।
सातै हींसारव हुवै, दीपै देवीदास।।


दुसासण रै समान वीरता प्रगट करतौ देईदास वैरियां रा दळां में ओपियौ। राव जैता रौ कुळोधर देईदास सत्रु सेना रूपी अंधेरा नै नासतौ सूरज री भांत दीखियौ। देईदास रै घोड़ा रै हींसारव री हणहणाट सातौं दीपां में सुणीजी। अैड़ौ पराक्रम धणी देईदास जैतावत राव मालदेव निमत मेड़तै काम आयौ। राजस्थान में राव मालदेव एक अजोड़ राजा हुवौ। दिल्ली रा अफगान नै मुगल पातसाहां री सेना सूं लोह रटाका लिया। मरु देस री सीमावां रो घणौ विस्तार कियौ। रात दिन खेड़-खेटा करतौ थकौ भी कदै निरास नै उदास नीं हुवौ।

राव मालदेव जुद्ध इज नीं लड़िया मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ गढ़-कोटां, जीवरखां रा भी घणा निर्माण किया। प्रजा रै खातर कूवा-बावड़ियां खिंणाई। उण री सखरी प्रत पाळणा किवी। जद ई तौ राजस्थान रा ख्यातकारां राव मालदेव नै मंडळीक राजा, हिन्दुवां रौ पातसाह कैय नै चितारियौ है। कवि आसौ बारहठ राव मालदेव रै पुरसारथ रौ वरणन करते थकै कैयौ है-

कवण क्रिसन पति सबळ, काळ पति कवण अंगजित।
प्रिथीपत कंुण बाणपत, सुरपत कवण सतेजति।।
कवण नाथपति जीत, कवण केसवपति दाता।
सीतापति कुण सीत, कवण लखमण पति भ्राता।।
सबळ को अवर सूझै नहीं, जाचिग जंपै सयल जण ।
हिन्दुवां मांहि ओ हिन्दुवौ, मालपति मोटौ कवण।।


इण संसार में अगन सूं बढ नै सबळ कुंण हुवौ है। जमराज रै बिना अगंजित कुंण है। धनखधर अरजण सूं पराक्रम बळी कुंण हुवौ है। देवपति इन्द्र सूं ज्यादा वडौ राजा कुंण है। गोरखनाथ रै सिवाय वडौ जति कुंण हुवौ, भगवान् केसोराय सूं इधकौ दातार कुंण नै सीतामाता जैड़ी सती नै लिछमण सरीखौ भाई बीजौ कुंण हुवौ। इणां रै जोड़ रौ राव मालदेव रै बिना दूजौ कोई हिन्दूपति नीं दीखै।

राव मालदेव गादी बैठा जद फगत दोय पड़गनां रौ धणी ही अर पछै तैतीस पड़गना जीत नै मारवाड़ रा राज रौ बिस्तार कियौ। राव मालदेव जिका-जिका तुंबां पड़गना खाटिया उणा रा ख्यातां बातों में नांववार बखाण मिळे है। सुणीजै-

महि सोजत ली माल, भाल लियौ मेड़तौ।
माल लियौ अजमेर, सीम सांभर सहेतौ।।
बांको गढ़ बदनौर, माल लीधौ दळ मेले।
राइमाल रायपुर लियौ, भाद्राजण भेळे।।
नागौर निहचि चढ़ि नळै, खाटू लीधी खड़ग पणि।
तप पांण हुवौ गांगा तणौ, धींग मालदे सैंधणी।।
लोड लियौ लाडणूं, दुरंग लीधौ डिडवाणौ।
नयर फतैपुर नाम, आप वसि कियौ आपांणौ।।
कमधज लई कासली, रूक बळ लियौ रेवासौ।
चांप लई चाटसू, मुक्यौ वीरभाण मेवासौ।।
जड़ळग पण जाजपुर लियौ, गह छांडे कुंभौ गयौ।
मालदे लियौ मंदारपुर, लियौ टांक टोडो लियौ।।


इता ही इज नीं राव मालदेव सिवाणौ, जाळौर, सांचौर, भीनमाळ, बीकानेर फलोधी, पोकरण, उमरकोट, कोटडा़ै, बाड़मेर, चौहटण आड़ घणा पड़गना जीत नै मारवाड़ रै सामिळ किया।

मेवाड़ रा पासवानिया बणवीर नै चित्तौड़ सूं बारै काढ़ नै राणा उदैसिंघ नै चीतौड़ रौ घणी थरपबा में मदद दी, अर पछै जद राणौ उदैसिंघ पाछी आंख काढबा लाग्यौ जद कुंमलमेर अर हरमाड़ा में उण सूं भी भिड़बा में पाछ नीं राखी।

इणु भांत राव मालदेव आपरी आखी उमर जुद्धां रा नगारा बजावौ, सिंधूड़ा दूहा दिरावतौ रैयौ नै संवत 1616 में इण संसार में आपरी कीरत पाछै छोड़ नै
अठै सूं विदा होय सुरलोक रौ राह लियौ।
मालदेव रै मरण पर कह्यौ है-
असी सहस अस’बार, सहस मैंगल मैमंतां।
हाजी अली मसंद, दैत राकस देखतां।।
भांगेसर वासरहिं, चडे रिण वदृहि जोड़ै।
फतैखान सारिखा मेछ, भूअ डंडि मरोडै़।।
टहियो पिराक्रम आप बळि, सत दुरिक्ख रक्खी सरणी।
माणी न मल्ल ऊभै मुणिस, सूर मुरद्धर वर तरुणि।।


राजस्थान री सीमा बधाबा वाळौ नै उण री रुखाळ करण वाळौ मारवाड़ री धरती माथै बीजौ अैड़ो प्रतापीक धणी नीं जलमियौ