बुधवार, 31 अगस्त 2016

मारै चोट नंगारै इंदर, थिरक दामणी नाचै। 

मारै चोट नंगारै इंदर, थिरक दामणी नाचै। 
तोड़ै तान कड़बली-सिट्टा, खेतां गिंदड़ माचै।। 
जंगल-खेत जीव-जड़ हरखै, झिर्मिर मेह बरसतां। 
डमरो फूटै हवा सुवासै, काचर-फली महकतां। 
कैर सांगीर खींपोली, चिरपोटण मीठी-खाटी। 
ऐ कंचनमेवा धरती का, वाह भई शेखावाटी।।

सावण भादो सजल सुरंगा, आसोजां पुरवाई। 
किरै काकड़ी मटकाचरला, रुत मेलांकी आई।। 
फलै फली बध बेलां जामै, लांप मतीरा मिट्ठा। 
हवा चालतां लुलै कड़बली, तान तोड़ाता सिट्टा।। 
रितुआं को रिमझोल अलूंठो उर्वर मरु की माटी। 
सावण आवण घमओ सुहावण, वाह भई शेखावाटी।।

हल सोट्या'र हलाई जोता, कढै ऊमरा ऊंटां। 
ओघड़ा बादल हर्सै बर्सै, जड़ पकड़ै जच बूंटा।। 
तम्बू तमऐ बेल बिरछां, बिछ हर्या गलीचा धरत्यां। 
भादो दे सौगात, मतीरा, सावण सजल बरसतां।। 
खाय कोरड़ा इंदर का, बीजल चिमकै कड़काती। 
जल छिड़कै बादलियो भिस्ती, वाह भी शेखावाटी।।

उमड़़ै ल्हैर हवा चालै, लुल पली फसल लैरावै। 
हंसतो बिछ्या गलीचां पर, मन लोट-पलेटा खावै।। 
रलका दे बरसावै करसो, घमक बाजरो बरसै। 
करै उचावण मनकोरी, मन नाज बरसतां हरसै।। 
मीठा लाल मतीरा काचर, ककड़ी मीठी-खाटी। 
मीणत को फल मिलै धणी नै, वाह भई शेखावाटी।।

पीली-पीली पसरकटाली, लीला फूल धमासै कै। 
फाग चढ़ै फागण में, मस्ती चढ़ च्यावै चौमासै में।। 
आक-धतुरा नसो करडेा, खड्या आड़ ले पेडां की। 
ऐ चोड़ै लिपटाई राखै, लदपद बेल ककेड़ां की।। 
झाला देवै दरखत, बेलां बाड़ डाक चढ़ आती। 
मर्या जियावै परवा चाल्यां, वाह भई शेखावाटी।।

पर्यावरण बिगाडू जन पै, थोर जताती व्यंग। 
के मजला कै हाथ लगाले, ऊभी नंग धडंग।। 
आढ आवरण कांटां को,या खड़ी उधाड्यां पेट। 
पुलिस्यां की वर्दी में जाणी, महिला अपटूडेट। 
झाउलो दे मार सांप नै, पूंछ पकड़ उस काठी। 
आतकी सिर पटक मरै ज्यूं, वाह भई शेखावाटी।।

मादकता पुखाी की, मेघा की मचल मल्हार। 
झिरमिर बर्स मेहो, टण मण टैणां की टणकार। 
टम टम की बरखा बरसै, ऊठ सवांरी तड़कै। 
मुलकै गौरी मनभरियो, परदेसी आवै अबकै।। 
बोजां ऊपर पसर बेलड्यां, रुप छटा छिटकाती। 
मधरा झोटा पेड़ झुलाता, वाह भई शेखावाटी।। 
भरी जवानी सावण सींचै, बावड़ बरसै भादो। 
आस्योजां में बूढो बादल, मोती पटकै जातो।। 
साथ उमर कै जयां आपको, बदलै कोई पंथ। 
खड़ी देखती रह्वै गौरड़ी, साजन बणतां संत।। 
बालपणो दे ज्याय जवानी, फेर बुढ़ापो लाठी। 
कुदरत की फितरत है न्यारी, वाह भई शेखावाटी।।

धरा तपै बैसाख जेठ, जद धिर चोमासो आवै। 
मेट बाबो सिर पोट बांध, धर फली काचरा ल्यावै।। 
चंदो बाबो पोली दे, अर घी को भर्यो कचोलो। 
आदो लाडू आवै ना, सो पांती आवै दोरो।। 
घाणी-माणी घाल टाबरी, रामारोल मचाती। 
बाबोजी को सुगण लोटियो, वाह भाई शेखावाटी।।

झुलस मिटै धरती की, सावण बूढ़ै करै फुवार। 
काजलिया बादल बरसै, रै घटाटोप इकसार।। 
झूलै पर चढ़ उड़ै उमंगां, झिरमिर बरसै मेह। 
रुत पावस की आय, धरा नै हरी भरी करदे।। 
रंगसाला में थरिक नाचती, आभै में दमकाती। 
बीजल रंग भरै घुप रातां, वाह भई शेखावाटी।।

सूर्यो सजल करै सवाण, भादो परवा दे बाला। 
जोह्ड़ां सै आलिंगल करती, नदी डाकती नाला।। 
सुरज कुंडालो चांद जलेरी, तीतर पंखी बादल। 
सज ताकै बिरखा नै, जाणी विधवा राच'र रकाजल।। 
आस्योजां बावड़ पछवाई, बिरखा ल्यावै जाती। 
गाड़ां भरै नाज का कोठा, वाह भई शेखावाटी।।

भर जोबन में नदी अकड़ती, चाली आवै दौड़। 
जाणी रुपसी ले अंगड़ाई, सगलो अंग मरोड़।। 
खड्या उड़ी कै निरा तिसाया, बांह पसार्यां बांध। 
मिल गाढा छक ज्यावै, फेरूं चादर चालै लांघ।। 
झिरमिरियो सो लूंठो मौसम, सिट्टी हवा बजाती। 
परवा बैरण पीर जगावै, वाह भई शेखावाटी।।

सावण बरस्यां मिटै सायबा, लगी धरा की जूल। 
मुलकै ऊबा खड्या रुंखड़ा, बेलां पसरै फूल।। 
घमओ तावड़़ो पड़ै जेठ में, बदन ज्याय कुमलाय। 
आस बंधै आसाढ़ आवतां, मिटै हिये की लाय।। 
नर महना आसोज-भादवो, फेरूं आवै काती। 
ओ मौस मेली मेलां को, वाह भई शेखावाटी।।

मिलन आंख को करवावै, आकरसण को ऐसास। 
बिन बोल्यां पलकां दरसावै, अंतसमन की प्यास।। 
मेल-बिछोह परसपर दोनूं है जीवन का खेल। 
बड़ो मजो मेलां में यारो, होकर धक्कम पेल।। 
बरसां का मिलबा का वादा, यारी टीस जगाती। 
सावण को मतवालो मौसम, वाह भई शेखावाटी।।

बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता। 
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।। 
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह। 
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।। 
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी। 
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 
हियै-कालजै ही थाह टपकै, गीत घणा उममानी।। 
गीता आत्मा गीत धरोहर, गीत भावना जन की। 
गीतां में मरुजीवन मुलकै, गीत कथा मरुमन की।। 
ऊंच चढ़ै पातलियो ढोलो, मारू मन की थाती। 
मन की उपज निपज गीतड़ला, वाह भई मालाणी

कुरजा, लैर्यो, लूर पीपली, पीलो चंग धमाल। 
मुरलो, मूमल, हंजामारू, रस का गीत कमाल। 
रखड़ी-जकड़ी, बिणजारो, रामू-चनणा का बोल। 
सगी-सगा सै करै ठिठोली, ऐ तो मिलै न मोल।। 
पीढ़ा घाल'र लगै सीठणा, गीतां की परिपाटी। 
साल्यां छेड़ करै जीजा सै, वाह भई मालाणी

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

पार किया पड़सी

दो पग आगा,दस पग पाछा,इयां कियां पार पड़ेली
दस है कूड़ा,दो है साचा, इयां कियां पार पड़ेली

कपडछाण जे करो सांच रो,हाथ कंई नई आवेला
मुंडा माथा,कूड़ा साथा, इयां कियां पार पड़ेली

जोर जमायो कुरसी तांई,दौड़ लगायी कुरसी तांई
करयां ऊंधा साटा-बाटा,इयां कियां पार पड़ेली

मिनाखाचारो रूंख लटकियो,यारी पड़गी कूवे मांई
कूवे भांग घुली है यारां,इयां कियां पार पड़ेली

आंगणिया खाली-खाली है,गली-गवाडां स्यापो पड़ग्यो
बरणाटा मारे सरणाटा,इयां कियां पार पड़ेली

चमक उतरगी धोरां री,सै धोला धट्ट होयग्या है
गाँव आंवता सैरां मांई,इयां कियां पार पड़ेली