गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

औरत के सोलाह श्रंगार

आज आपको औरत के सोलाह श्रृंगार के बारे में बताते हे
औरत के सोलाह श्रंगार और
उनके महत्तव : : :
૧) बिन्दी – सुहागिन स्त्रियां कुमकुमया सिन्दुर
से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है
और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक
माना जाता है ।
૨) -सिन्दुर – सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग
चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर
पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर
जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है ।
૩) काजल – काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे
आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन
को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है ।
૪) -मेंहन्दी – मेहन्दी के बिना दुल्हन का श्रृंगार
अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन
स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में
मेहन्दी रचाती है। नववधू के हाथों में
मेहन्दीजितनी गाढी रचती है, ऐसा माना जाता है
कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है

૫) -शादी का जोडा – शादी के समय दुल्हन
को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल
जोड़ा पहनाया जाता है ।
૬) -गजरा-दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित
फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार
कुछ फीकासा लगता है ।
૭) -मांग टीका – मांग के बीचों बीच पहना जाने
वाला यह स्वर्ण आभूषण सिन्दुर के साथ
मिलकर वधू की सुन्दरतामें चार चाँद लगा देता है

૮)-नथ – विवाह के अवसर पर पवित्र अग्निके
चारों ओर सात फेरे लेनेके बाद में देवी पार्वती के
सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
૯) -कर्ण फूल – कान में जाने वाला यह आभूषण
कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे
चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
૧૦) -हार – गले में पहना जाने वाला सोने
या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन
स्त्री के वचन बध्दता का प्रतीक माना जाता है।
वधू के गले में वर व्दारा मंगलसूत्र से उसके
विवाहित होने का संकेत मिलता है ।
૧૧) -बाजूबन्द – कड़े के समान आकृति वाला यह
आभूषण सोने या चान्दी का होताहै। यह बांहो में
पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द
कहा जाता है।
૧૨) -कंगण और चूडिय़ाँ – हिन्दू परिवारों में
सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास
अपनी बडी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और
सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ
वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने
पर उसकी सास ने दिए थे। पारम्परिक रूप से
ऐसा माना जाता है किसुहागिन
स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से
भरी रहनी चाहिए।
૧૩) अंगूठी – शादी के पहले सगाई की रस्म में
वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने
की परम्परा बहुत पूरानी है। अंगूठी को सदियों से
पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास
का प्रतीक माना जाता रहा है।
૧૪) -कमरबन्द – कमरबन्द कमर में पहना जाने
वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद
पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और
भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबन्द इस बात
का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर
की स्वामिनी है। कमरबन्द में प्राय: औरतें
चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
૧૫) -बिछुआ – पैरें के अंगूठे में रिंगकी तरह पहने
जाने वाले इस आभूषण
को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्परिक
रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के
अलावा स्त्रियां कनिष्का को छोडकर
तीनों अंगूलियों में बिछुआ पहनती है।
૧૬) -पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण
के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनिसे घर के हर सदस्य
को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।
सनातन संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है….,,
भारत माता की जय,,,, वंदेमातरम्,
सोलह सिंगार….
करवा चौथ सोलह सिंगार कर सजने-संवरने का दिन हैं, पर क्या आप जानती हैं कि सोलह सिंगार होते क्या हैं? परंपराओं को निभाते हुए सिंगार की परंपरा को भी जान ही लिया जाए। पुराने समय में दुल्हन को संवारने के लिए सोलह उपाय किए जाते थे। आप भी सिंगार के इन सोलहा तरीकों को आजमाएं और खूबसूरती निखारें
– मर्दन
खुशबूदार तेल से मालिश करना खूबसूरती पाने की ओर पहला कदम था। पुराने समय में दुल्हन के गुलाब, चमेली या चंदन के तेल की मालिश की जाती थी।
– मंगल स्नानम
नहाने के पानी में दूध मिलाया जाता था। सर्दियों में बादाम के तेल में गुलाब की पंखुडियां तो गर्मियों में खस मिलाया जाता था।
– केशपाश सुगंधी
बालों में शिकाकाई, नागरमोथा, कचरी का पेस्ट बनाकर लगाने के बाद अरीठा से बालों को धोया जाता था।
– अंगराग विलेपन
चंदन के पेस्ट को चेहरे, गर्दन और कंधे पर समान रूप से लगाया जाता था।
– काजल रेख दीपन
माना जाता था कि कि काजल न केवल आंखों की खूबसूरती बढ़ाता है, बल्कि सूर्य की किरणों से आंखों की रक्षा भी करता है।
– तिलक प्रसाधन
बिंदी या मंगल चिह्न बनाए जाने की परंपरा रही है। बिंदी गोरोचना, हरतल, कुंसुंबा आदि से बनती थी।
– मुख प्रसाधन
सोने, चांदी या मोती के बुरादे से चेहरे को निखारा जाता था।
– केश पाश रचना
कुंडलाकार यानी लंबे लंबे रोल वाले बाल या जूडा, सर्पाकृति यानी सांप की आकृति जैसे शायद फ्रेंच रोल टाइप हेअर स्टाल, फोल्डेड स्टाइल जूडे चलन में थे।
– अलाक्ता निवेशन
उन दिनों हर्बल लिपस्टिक ही तैयार होती थी जो मधुमोम में कुसुंबा फूल की पत्तियों को मिलाकर तैयार की जाती थी।
– हस्त सुशोभिताम
हाथों को साफ सुथरा करके सजाया जाता था।
– पाद सुशोभिताम
पांवों को साफ-सुथरा करके आलता लगाया जाता था।
– महा वस्त्र परिधानम
दुल्हन की पोशाक चटख रंगों और सिल्क के वस्त्रों में गोल्ड बॉर्डर का इस्तेमाल होता था।
– पुष्प धारण्म
गजरा, गले में फूलों की माला, फूलों के ही बाजूबंद और कलाई पर भी फूलों की माला को बांधा जाता है।
– अलंकार धारणम
दुल्हन के आभूषणों में कमरबंद, पायल, बाजूबंद और चूडियां। जेवर सोने, चांदी, मोती, शंख और कीमती पत्थरों के होते थे।
– तांबूल सेवनम
दुल्हन को पान खिलाया जाता था।
– दर्पण विलोकन
दुल्हन आईने में खुद को निहारती है और फिर मंडप में दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे की आंखों में देखते थे, इसे शुभ दृष्टि कहा जाता था।

उत्तर भड़ किवाड़ भाटी

उत्तर भड़ किवाड़ भाटी
उत्तर भड़ किंवाड़
काक नदी की पतली धारा किनारों से
विरक्त सी होकर धीरे धीरे सरक रही
थी | आसमान ऊपर चुपचाप पहरा दे रहा
था और नीचे लुद्रवा देश की धरती , जिसेउत्तर भड़ किवाड़ भाटी
आजकल जैसलमेर कहा जाता है , प्रभात
काल में खूंटी तानकर सो रही थी | नदी
के किनारे से कुछ दूरी पर लुद्रवे का
प्राचीन दुर्ग गुमसुम सा खड़ा रावल
देवराज का नाम स्मरण कर रहा था |
'कैसा पराक्रमी वीर था ! अकेला होकर
जिसने बाप का बैर लिया | पंवारों की
धार पर आक्रमण कर आया और यहाँ युक्ति
, साहस और शौर्य से मुझ पर भी अधिकार
कर लिया | साहसी अकेला भी हुआ तो
क्या हुआ ? हाँ ! अकेला भी अथक परिश्रम
,साहस और सत्य निष्ठा से संसार को
अपने वश में कर लेता है ....|
उसका विचार -प्रवाह टूट गया | वृद्ध
राजमाता रावल भोजदेव को पूछ रही है
-
' बेटा गजनी के बादशाह की फौजे अब
कितनी दूर होंगी ?'
' यहाँ से कोस भर दूर मेढ़ों के माल में |'
' और तू चुपचाप बैठा है ?'
' तो क्या करूँ ? मैंने बादशाह को वायदा
किया कि उसके आक्रमण की खबर आबू नहीं
पहुंचाउंगा और बदले में बादशाह ने भी
वायदा किया है कि वह लुद्रवे की धरती
पर लूटमार अथवा आक्रमण नहीं करेगा |'
राजमाता पंवार जी अपने १५-१६
वर्षीय इकलौते पुत्र को हतप्रद सी
होकर एकटक देखने लगी , जैसे उसकी
दृष्टि पूछ रही थी ' क्या तुम विजयराज
लांजा के पुत्र हो ? क्या तुमने मेरा दूध
पिया है ? क्या तुम्ही ने इस छोटी
अवस्था में पचास लड़ाइयाँ जीती है ? '
नहीं ! या तो सत्य झुंट हो गया या फिर
झुंट सत्य का अभिनय कर रहा था |
परन्तु राजमाता की दृष्टि इतने प्रश्नों
को टटोलने के बाद अपने पुत्र भोजदेव से
लौट कर अपने वैधव्य पर आकर अटक गयी
| लुद्रवे का भाग्य पलट गया है अन्यथा
मुझे वैधव्य क्यों देखना पड़ता ? क्या मै
सती होने से इसलिए रोकी गई कि इस
पुत्र को प्रसव करूँ | काश ! आज वे होते
|' सोचते-सोचते राजमाता पंवार जी के
दुर्भाग्य से हरे हुए साहस ने निराश
होकर एक निश्वास डाल दिया |
क्यों माँ, तुम चुप क्यों हो ? क्या मेरी
संधि तुम्हे पसंद नहीं आई ? मैंने लुद्रवे को
लुट से बचा लिया , हजारों देश वासियों
की जान बच गई |'
' आज तक तो बेटा , आन और बात के लिए
जान देना पसंद करना पड़ता था |
तुम्हारे पिताजी को यह पसंद था
इसलिए मुझे भी पसंद करना पड़ता था और
अब वचन चलें जाय पर प्राण नहीं जाय
यह बात तुमने पसंद की है इसलिए
तुम्हारी माँ होने के कारण मुझे भी यह
पसंद करना पड़ेगा | हम स्त्रियों को तो
कोई जहाँ रखे , खुश होकर रहना ही
पड़ता है |'
आगे राजमाता कुछ कहना ही चाहती थी
किन्तु भोजराज ने बाधा देकर पूछा - "
किसकी बात और किसकी आन जा रही है
| मुझे कुछ भी मालूम नहीं है | कुछ बताओ
तो सही माँ ! "
' बेटा ! जब तुम्हारे पिता रावलजी मेरा
पाणिग्रहण करने आबू गए थे तब मेरी माँ
ने उनके ललाट पर दही का तिलक लगाते
हुए कहा था - " जवांई राजा , आप तो
उत्तर के भड़ किंवाड़ भाटी रहना |" तब
तुम्हारे पिता ने यह बात स्वीकारी थी
| आज तुम्हारे पिता की चिता जलकर
शांत ही नहीं हुई कि उसकी उसकी राख
को कुचलता हुआ बादशाह उसी आबू पर
आक्रमण करने जा रहा है और उत्तर का
भड़-किंवाड़ चरमरा कर टुटा नहीं ,
प्राण बचाने की राजनीती में छला
जाकर अपने आप खुल गया | इसी दरवाजे
से निकलती हुई फौजे अब आबू पर आक्रमण
करेंगी तब मेरी माँ सोचेगी कि मेरे जवांई
को १०० वर्ष तो पहले ही पहुँच गए पर
मेरा छोटा सा मासूम दोहिता भी इस
विशाल सेना से युद्ध करता हुआ काम आया
होगा वरना किसकी मजाल है जो
भाटियों के रहते इस दिशा से चढ़कर आ
जावे | परन्तु जब तुम्हारा विवाह
होगा और आबू में निमंत्रण के पीले चावल
पहुंचेंगे , तब उन्हें कितना आश्चर्य होगा
कि हमारा दोहिता तो अभी जिन्दा है
|"
बस बंद करो माँ ! यह पहले ही कह दिया
होता कि पिताजी ने ऐसा वचन दिया है
| पर कोई बात नहीं , भोजदेव प्राण
देकर भी अपनी भूल सुधारने की क्षमता
रखता है | पिता का वचन मै हर कीमत
चुका कर पूरा करूँगा |"
" नहीं बेटा ! तुम्हारे पिता ने तो मेरी
माता को वचन दिया था परन्तु इस
धरती से तुम्हारा जन्म हुआ है और
तुम्हारा जन्म ही उसकी आन रखने का
वचन है | इस नीलाकाश के नीचे तुम बड़े
हुए हो और तुम्हारा बड़ा होना ही इस
गगन से स्वतंत्र्य और स्वच्छ वायु बहाने
का वचन है | तुमने इस सिंहासन पर
बैठकर राज्य सुख और वैभव का भोग भोग
है और यह सिंहासन ही इस देश की
आजादी का , इस देश की शान का , इस
देश की स्त्रियों के सुहाग ,सम्मान और
सतीत्व की सुरक्षा का जीता जागता
जवलंत वचन है | क्या तुम ...............
.........|
' क्षम करो माँ ! मैं शर्मिंदा हूँ | शत्रु
समीप है | तूफानों से अड़ने के लिए मुझे
स्वस्थ रहने दो | मैं भोला हूँ - भूल गया
पर इस जिन्दगी को विधाता की भूल
नहीं बनाना चाहता |'
झन न न न !
रावल भोजदेव ने घंटा बजाकर अपने
चाचा जैसल को बुलाया |
' चाचा जी ! समय कम है | रणक्षेत्र के
लुए में जिन्दगी और वर्चस्व की बाजी
लगानी पड़ेगी | आप बादशाह से मिल
जाईये और मैं आक्रमण करता हूँ | कमजोर
शत्रु पर अवसर पाकर आघात कर , हो सके
तो लुद्रवा का पाट छीन लें अन्यथा
बादशाह से मेरा तो बैर ले ही लेंगे |
जैसल ने इंकार किया , युक्तियाँ भी दी ,
किन्तु भतीजे की युक्ति , साहस और
प्रत्युत्पन्न मति के सामने हथियार डाल
दिए | इधर जैसल ने बादशाह को भोजदेव
के आक्रमण का भेद दिया और उधर कुछ ही
दुरी पर लुद्रवे का नक्कारा सुनाई
दिया |
मुसलमानों ने देखा १५ वर्ष का का एक
छोटा सा बालक बरसात की घटा की
तरह चारों और छा गया है | मदमत्त और
उन्मुक्त -सा होकर वह तलवार चला रहा
था और उसके आगे नर मुंड दौड़ रहे थे |
सोई हुई धरती जाग उठी , काक नदी की
सुखी हुई धारा सजल हो गई , गम सुम खड़े
दुर्ग ने आँखे फाड़ फाड़ कर देखा - उमड़ता
हुआ साकार यौवन अधखिले हुए अरमानों
को मसलता हुआ जा रहा है | देवराज और
विजयराज की आत्माओं ने अंगडाई लेकर
उठते हुए देखा - इतिहास की धरती पर
मिटते हुए उनके चरण चिन्ह एक बार फिर
उभर आए है और उनके मुंह से बरबस निकल
पड़ा - वाह रे भोज , वाह !
दो दिन घडी चढ़ते चढ़ते बादशाह की
पन्द्रह हजार फ़ौज में त्राहि त्राहि
मच गई | उस त्राहि त्राहि के बीच
रणक्षेत्र में भोजदेव का बिना सिर का
शरीर लड़ते लड़ते थक कर सो गया - देश
का एक कर्तव्य निष्ठ सतर्क प्रहरी
सदा के लिए सो गया | भोजदेव सो गया
, उसकी उठती हुई जवानी के उमड़ते हुए
अरमान सो गए , उसकी वह शानदार
जिन्दगी सो गई किन्तु आन नहीं सोई |
वह अब भी जाग रही है |
जैसल ने भी कर्तव्य की शेष कृति को पूरा
किया | बादशाह को धोखा हुआ | उसने
दुतरफी और करारी मात खाई | आबू लुटने
के उसके अरमान धूल धूसरित हो गए |
सजधज कर दुबारा तैयारी के साथ आकर
जैसल से बदला लेने के लिए वह अपने देश
लौट पड़ा और जैसल ने भी उसके स्वागत के
लिए एक नए और सुद्रढ़ दुर्ग को खड़ा कर
दिया जिसका नाम दिया - जैसलमेर ! इस
दुर्ग को याद है कि इस पर और कई लोग
चढ़कर आये है पर वह कभी लौटकर नहीं
आया जिसे जैसल और भोजदेव ने हराया |
आज भी यह दुर्ग खड़ा हुआ मन ही मन "
उत्तर भड़ किंवाड़ भाटी " के मन्त्र का
जाप कर रहा है |
आज भी यह इस बात का साक्षी है कि
जिन्हें आज देशद्रोही कहा जाता है , वे
ही इस देश के कभी एक मात्र रक्षक थे |
जिनसे आज बिना रक्त की एक बूंद बहाए
ही राज्य , जागीर , भूमि और सर्वस्व
छीन लिया गया है , एक मात्र वे ही
उनकी रक्षा के लिए खून ही नहीं ,
सर्वस्व तक को बहा देने वाले थे | जिन्हें
आज शोषक , सामंत या सांपों की औलाद
कहा जाता है वही एक दिन जगत के
पोषक, सेवक और रक्षक थे | जिन्हें आज
अध्यापकों से बढ़कर नौकरी नहीं मिलती
, जिनके पास सिर छिपाने के लिए अपनी
कहलाने वाली दो बीघा जमीन नसीब
नहीं होती , जिनके भाग्य आज
राजनीतिज्ञों की चापलूसी पर आधारित
होकर कभी इधर और कभी उधर डोला
करते है , वे एक दिन न केवल अपने भाग्य के
स्वयं विधाता ही थे बल्कि इस देश के भी
वही भाग्य विधाता थे | जिन्हें आज
बेईमान , ठग और जालिम कहा जाता है वे
भी एक दिन इंसान कहलाते थे | इस भूमि
के स्वामित्व के लिए आज जिनके हृदय में
अनुराग के समस्त स्रोत क्षुब्ध हो गए है
वही एक दिन इस भूमि के लिए क्या नहीं
करते थे |
लुद्रवे का दुर्ग मिट गया है जैसलमेर का
दुर्ग जीर्ण हो गया है , यह धरती भी
जीर्ण हो जाएगी पर वे कहानियां कभी
जीर्ण नहीं होगी जिन्हें बनाने के लिए
कौम के कुशल कारीगरों ने अपने खून का
गारा बनाकर लीपा है और वे कहानियां
अब भी मुझे व्यंग्य करती हुई कहती है -
एक तुम भी क्षत्रिय हो और एक वे भी
क्षत्रिय थे |
चित्रपट चल रहा था दृश्य बदलते जा रहे
थे |
स्व. श्री तन सिंह जी , बाड़मेर

गोरबंद और रमझोलो

धरती तूं संभागणी ,(थारै) इंद्र जेहड़ो भरतार।
पैरण लीला कांचुवा , ओढ़ण मेघ मलार।।
रंग आज आणन्द घणा, आज सुरंगी नेह।
सखी अमिठो गोठ में , दूधे बूठा मह।।

गोरबंद और रमझोलो से झमक झमक करते हुए ऊँटों और घोड़ों वाली वह बारात जा रही थी , सूखे मरुस्थल की मन्दाकिनी प्रवाहित करती हुई , आनंद और मंगल से ठिठोली करती हुई । परन्तु कौन जनता था कि उस सजी सजाई बारात का वह अलबेला दूल्हा एक दिन जन जन के हृदय का पूज्  देवता बनेगा ?

नमक का हक अदा करने के लिए उस ने जान दे दी

रंग रामा रंग लिछमणा, दसरथ रा कवंराह !
भुज रावण रा भांजिया, आलीजा भँवरा !१!
रंग रामा रंग लिछमणा, दसरथ रा पूतांह  !
लंक लुटाई सोहणी, रंग बां रजपूतांह !२!
कर्ण खयंकर लंक रा, जीत भयंकर जंग !
रघुवर किंकर आपने, रंग हो हणुवनत रंग !३!
सज टोला सबळ, नाग बहोला नीह !
अमलां बेली आपने, भोला रंग भुतीह !४!
धमके पांवा घुघरा, पलकै तेल शरीर !
अमलां बेलां आपने, रंग हो भैरव वीर !५!
तो सरणे ब्रन खटतणी ,लोवाड़ वाली लाज !
आवड करणी आपने ,रंग अधका महराज !६!,
पापी कंस पछाडियो , तिकण कियो जग तंग !
अवनि भार उतरता ,रंग हो गोविन्द रंग !७!
विजय विजय तोसूं बणी,जुड़तां भारत जंग !
बाढ़ खलां बरंग ,रंग हो गोविन्द रंग  !८!
करियो अकर्त कैरवां,चीर बढायो चंग  !
सरम राखी द्रुपद सुता ,रंग हो गोविन्द रंग !९!
करयो नहं उण दिन किसन, भीसम रो प्रण भंग !
तजि प्रतिज्ञा आप तणी, रंग हो गोविन्द रंग !१०!
रंग अणिरा भादरा ,टणका आगल टंग !
खागां सामा सिर पड़े , राजपूतां ने रंग !११!
साहस कर जुटे समर ,तुरी चचटे तंग !
टुट्टे सिर गढ़ नह टुट्टे ,बां राजपूतां ने रंग !१२!
फूटे गोला फिन्फारा , टूटे तुरीयं तंग !
संग लडियो सुल्तान रे , उन रुपवत ने रंग !१३!
रुपावत खेत सिंह राठौर निमाज ठाकुर सुल्तान के साथ जोधपुर की सेना से लड़ कर मारा गया था .(यह वाकिया बहुत ही रोम्चक ही नही बल्कि राजपूत चरित्र की  बेजोड़ मिसाल है. इस गरीब राजपूत ने निमाज हवेली में रात बिताई थी उन के  रसोवाड़े में खाना खाया था ,नमक का हक अदा करने के लिए उस ने जान दे दी ।

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़,

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़,
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़ !!
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़,
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़ !!
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़,
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़ !!
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह,
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह !!
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़,
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़ !!
गढला भारत देस रा जुडै न थारी जोड़,
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़ !!

जद मेह अंधेरी राता मे टुटेडी ढाण्या चुती हि।

जद मेह अंधेरी राता मे टुटेडी ढाण्या चुती हि।
तो मारु रा रंग-मेहला मे दारु रि जाजम ढलती ही।
जद बा उनाला कि लुवा मे करसे री काया जलति हि,
तो छेल-भँवर रे चौबारे चौपङ रि जाजम ढलति हि।
पण करसे रि रक्षा खातर,
पण करसे रि रक्षा खातर,
सिस तलवार पर तोलणो पङतो।
धरती तने बोलनो पङतो।
धरती तने बोलनो पङतो।
बा राजस्थानी भाषा है ।।
जद-जद भारत मे था सता-जोग, आफत रि आँन्धी आयी हि,
बक्तर रि कङिया बङकि हि जद, सिन्धु राग सुनायी हि ।।
गङ गङिया तोपा रा गोला, भाला रि अणिया भलकि हि।
जोधा री धारा रक्ता ही, धारा रातम्बर रळकी ही ।
अङवङता घोङा उलहङता, रङवङता माथा रण खेता ।
सिर कटिया सुरा समहर मे, ढाला-तलवारा ले ढलता ।
रणबँका राठौङ भिङे, कि देखे भाल तमाशा है ।
उण बकत हुवे ललकार अठे, बा राजस्थानी भाषा है ।।

सूर्य चमकता रजपुतो का,

हरवळ भालां हाँकिया ,पिसण फिफ्फरा फौड़ ।
विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥
किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़ !
मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥
पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़।
फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥
सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़ !
जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥
सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़ !
साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥
हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़ !
रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥
                  -गंगासिंह भायल मूठली ।
सूर्य चमकता रजपुतो का,
सूर्य चमकता रजपुतो का, घनघोर बदरिया डरती थी !
था शेर गरजता सीमाओ पर, बिजली भी आहे भरती थी !!
है खून वही उन नब्जों मे, फिर क्यो वर्षो से सोते हो !
लूटा है चंद सियारो ने, फिर क्यो इन्हे मौका देते हो !!
अब चीर दो सीना काफिर के, तलवार वही पुरानी है !
रक्षक हो तुम इस भारत के, ललकार रही भवानी है !!
                   -गंगासिंह भायल मूठली ।
नावं सुण्या सुख उपजै !
नावं सुण्या सुख उपजै हिवड़े हरख अपार ।
इस्यो मरुधर देश में घणी करे मनवार ।।
मरुधर सावण सोवणो बरस मुसलधार ।
मरवण ऊबी खेत में गावे राग मल्हार||
सोनल वरणा धोरिया मीसरी मघरा बैर ।
बाजरी की सौरभ गमकै ले - ले मरुधर ल्हैर ।।
पल में निकले तावड़ो पल में ठंडी छांह ।
इस्या मरुधर देश में खेजड़ल्या री छांह ।।
मरुधर साँझ सुहावणी बाजै झीणी बाळ ।
बालक घैरै बाछडिया गायां लार गुवाल ।।
रिमझिम बरसे भादवो छतरी ताने मौर ।
मरुधर म्हारो सोवणों सगला रो सिरमौर ।।
झुमै फाग में गूंजे राग धमाल ।
घूमर घालै गोरड्या उड़े रंग गुलाल ।।
देसी राजपूत की देसी सोच ।
            -गंगासिंह भायल मूठली ।
ढ़ चितौड़
गढ़ चितौड़ गढ़ जालोर गढ़ कुंभलमेर ।
जैसलदे चणायो भाटीयों जग मे जैसलमेर ॥
गढ़ तणोट गढ़ मांडव गढ़ सांगानेर ।
महारावल चणायों भाटीयों भल गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ विजणोट गढ़ अर्बद देखो गढ़ अजमेर !
सोने रुपे झगमगे जग मे गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ बुंदी गढ़ मंडोवर महा गढ़ आमेर ।
मरुधरा गुणवंत गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ महेरान गढ़ नागोर खेड़गढ़ बाड़मेर ।
माड़ धरा महीपति जहाँ गढ़ जैसलमेर ॥
                 -गंगासिंह भायल मूठली ।

मरुधर देश.

मरुधर देश...
जल उंडा, थल उजला, नारी नवले वेश,
पुरुष पटघर निपजे, म्हारो मरुधर देश...

जहा पानी गहरा हो, जमीं सोने की तरह चमकदार हो,
जहा नारी का वेश सतरंगी हो और वहा का पुरुष बलवान और वीर हो ऐसा हमारा मरुधर देश हैं...
थाल बजता है सखी,दीठो नैण फुलाय !!
बाजा रे सिर चेतणो ,भूणां कणव सिखाय !!!

वीर धीर जठ जोगि निसरैं, निसरे काकङ बैरँ.......
सतियाँ रि साख भरे,म्हारो मरूधर सैरँ...

सोने री धरती जठै,चाँदी रो आसमान,
रंग रंगीलो रसभर्यो, म्हारो राजस्थान...

अखण्ड,प्रचण्ड और खण्ड-खण्ड

खण्ड-खण्ड प्रचण्ड था जिसका, वो मेरा भारत था अखण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, ना दिखता अब कुछ प्रचण्ड !!
भीष्म से भयंकर वीर से अर्जुन के अँधा-धुन्द तीर से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
शकुनी से अपने मामा ने देखो, भारत को किया खण्ड-खण्ड !!
बप्पा रावल का राज्य ईरान तक, भारत दिखता था प्रचण्ड !
कुम्भा के कर-कमलो में, भारत दिखता था अखण्ड !
जयचंद कि जयकर गूँजती, भारत दिखता था प्रचण्ड !
आल्हा-उदल से उदार झुन्झते, भारत दिखता था अखण्ड !!
पदमनी कि पुकार सुनकर, भारत हुवा था प्रचण्ड !
गोरा-बादल का घमासान देखकर, भारत दिखा था अखण्ड !!
केशरिया निशानी अखण्ड कि, जौहर ज्वाला थी प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, कुछ ना दिखता अब प्रचण्ड !!
बाबर बोला हम हुवे प्रचण्ड, सांगा शरीर हुवा खण्ड-खण्ड !
रजपूती शौर्ये को देखकर, भारत दिखता था प्रचण्ड !!
रजपूती शौर्ये था प्रचण्ड, अब रजपूती भी हुयी खण्ड-खण्ड !
बिन रजपूती के मेरा भारत, कैसे रह पाता अखण्ड !!
सिंहा से सरताज देखकर, भारत लगता था प्रचण्ड !
पाबू के परोपकार देखकर, भारत दिखता था अखण्ड !!
खण्ड-खण्ड में राणा-शिवा थे, भारत दिखता था प्रचण्ड !
बिन राणा और शिवा के, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !
मान सिंह कि काबुल फतेह से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
मान सिंह के बिना मान के, भारत हुवा था खण्ड-खण्ड !!
दुर्गादास का साहस अखण्ड था, भारत दिखता था प्रचण्ड !
दुर्गादास बिना ना कोई आश, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !!
अमर सिंह तो अमर हुवे पर, भारत दिखता था प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड अब भारत मेरा, कुछ न दिखता अब प्रचण्ड !!
जयमल की जयकार गूँजती, भारत दिखता था प्रचण्ड !
फत्ता सा फौलादी झुन्झता, भारत दिखता था अखण्ड !!
सुरों से इन वीरो से, भारत दिखता था प्रचण्ड !
पण्डो से पाखण्डो से, भारत हुवा खण्ड-खण्ड !!
बल-बुद्धि थी प्रचण्ड और मेरा भारत था अखण्ड !
बिन बल-बुद्धि के कैसे, भारत रहे अब प्रचण्ड !!
खण्ड-खण्ड पर खाण्डा खड़का, तलवारे भी थी प्रचण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा खाण्डा अब तो, तलवारे कैसे रहे प्रचण्ड !!
नर-मुण्डो की माला पहने, भारत दीखता था प्रचण्ड !
नर-मुण्डो की माला बिन, भारत दिखता अब खण्ड-खण्ड !!
पीढ़ी-पीढ़ी खण्ड-खण्ड हुवा और शांत हुवा भारत अखण्ड !
पीढ़ी-पीढ़ी प्रचंडता सिमटी, भारत दिखता है अब खण्ड -खण्ड !!
खण्ड-खण्ड प्रचण्ड था जिसका, वो मेरा भारत था अखण्ड !
खण्ड-खण्ड हुवा भारत मेरा, ना दिखता अब कुछ प्रचण्ड !!

रियासत- ए - मारवाड़ :-

मारवाड़ रियासत हो, राठौड़ो का राज हो !
रणवीरो में रोश हो, जौधा जैसा जोश हो !!
पिथल सा पानी हो, कुम्पा कि कहानी हो !
मीरा सि मेड़तानी हो, साथ माँ भटयाणि हो !!
रक्त में रवानी हो, रण-भूमि इसकी निशानी हो !
शेखा इसके शानी हो, सच्ची ये कहानी हो !!
जौहर की ज्वाला हो, जैता सा जूनून हो !
सिंहाजी सि समझ हो, चुंडाजी जी रि छतर हो !!
चन्द्र सेन चौतरफा हो, माँ नाग्नेच्या रि कृपा !!
जसवंत सिंह सि झुंझलाहट, राठौड़ो कि हर तरफ आहट हो !
गज सिंह कि गर्जना हो, हणुवन्त सिंह कि हुँकार हो !
मारवाड़ का गुणगान हो, हाथा में तलवार हो !!
रण-बंको को रहम हो, पर रण -भूमि सबसे अहम हो !
रिडमल सि राजनीती हो, आ बात अठे बीती हो !!
चांदा रि चतुराई हो, मेडतिया रि बडाई हो !
बिका सि बहादुरी हो, चाहे सामने शेरशाह सुरी हो !!
चाम्पा सा चरित्र हो, मुकन्दास सा मित्र हो !
मेडतिया रि वो मार हो, अमर सिंह सि कटार हो !!
कांधल रि किर्ति हो, माँ करणी रि कृपा हो !
मालदेव सि मात हो, राठौड़ जग - विख्यात हो !!
जैमल रि जयकार हो, राजपुताना रि पुकार हो ,
फत्ता सा फौलाद हो, शेखा सी औलाद हो !!
जौधा जैसा जंगी हो, तो भाग ज्यावे फिरंगी हो !
पाबु रा प्रवाडा जो याद करया आवे आडा !!
दारू हो दाखिरा रि, धरती हो आ वीरा रि !
शूरा हो शिकार हो, हाथा में तलवार हो !!
रघुकुल रा वटकाला हो, जौहर रि ज्वाला हो !
गौरबन्द रा गीत हो, राठौड़ा रि जीत हो !!
दुदाजी रा दिदार हो, हाथा में तलवार हो !
आसोप से आश हो, उदा से उम्मीद हो !!
दुर्गा जैसा दम हो, साथ आप और हम हो
मारवाड़ लुन्ठो होवे, रण-वीरा रो खूंटो होवे !!
गिरी -सुमेल पर गर्व हो, राजपूत एकता सर्वे हो !
तलवारा रा वार हो, राठौड़ी रि जयकार हो !!
वही आन बान शान हो, राजपुताना अपनी जान हो !

कब तलक सोये रहोगे,सोने से क्या हासिल हुआ

कब तलक सोये रहोगे,सोने से क्या हासिल हुआ,
व्यर्थ अपने वक्त को खोने से क्या हासिल हुआ,,
शान और शौकत हमारी जो कमाई ''वीरों'' ने वो जा रही,
अब सिर्फ बैठे रहने से क्या हासिल हुआ,,
सोती हुई राजपूती कौम को जगाना अब पड़ेगा,
गिर ना जाए गर्त में, ''वीरों'' उठाना अब पड़ेगा,,
बेड़ियाँ ''रुढिवादिता'' की पड़ी हुई जो कौम में,
उन सभी बेड़ियों को तोडना हमें अब पड़ेगा,,
संतान हो तुम उन ''वीरों'' की वीरता है जिनकी पहचान,
तेज से दमकता मुख और चमकती तलवार है उनका निशान,,
वीरता की श्रेणी में ''क्षत्रियों'' का पहला है नाम,
झुटला नहीं सकता जमाना, इथिहस है साक्षी प्रमाण,,
प्रहार कर सके ना कोई अपनी आन-बाण-शान पर,
जाग जाओ अब ऐ ''वीरो'' अपने ''महाराणा'' के आवहान पर,,
शिक्षा और संस्कारों की अलख जागते अब चलो,
राह से भटके ''वीरों'' को संग मिलते अब चलो,,
फूट पड़ने ना पाए अपनी कौम में अब कभी,
''क्षत्रिय एकता'' ऐसी करो के मिसाल दें हमारी सभी,,
कोई कर सके ना कौम का अपनी उपहास,
आओ ''एक'' होकर रचें हम अपना स्वर्णिम इतिहास,
जय महाराणा-एक होकर बुलंद करो राजपुताना....!!

दारूरा दुरगण

पिण्ड झड़े, रोबा पड़े, पड़िया सड़े पेंशाब।
जीब अड़े पग लडथड़े, साजन छोड़ शराब (१)
कॉण रहे नह कायदो, आण रहे नह आब।
(जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब (२)
जमीं साख जाति रहे, ख्याति हुवे खराब।
मुख न्याति रा मोड़ले, साथी छोड़ शराब (३)
परणी निरखे पीवने, दॉत आंगली दाब।
भॉत भॉत मांख्यां भमे, साजन छोड़ शराब (४)
आमद सू करणो इधक, खरचो घणो खराब ।
सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब (५)
सरदा घटे शरीर री, करे न गुरदा काम।
परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम (६)
कहे सन्त अर ग्रंथ सब, निष्चय धरम निचोड़ ।
जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ (७)
मोनो अरजी रे मनां, मत कर झोड़ झकाळ।
छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ (८)
चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब ।
ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब (९)
घर मोंही तोटो घणों, रांधण मिळे न राब।
बिलखे टाबर बापड़ा, साजन छोड़ शराब (१0)
दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब ।
जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब (११)

अपने पूर्वजों का सम्मान करें

१- अपने पूर्वजों का सम्मान करें तथा अपने बच्चों को पूर्वजों की कथाओं/गुणों से परिचित कराएँ.
२- अपने-अपने घरों में महाभारत,गीता,रामायण एवं महापुरुषों से सम्बंधित गाथाएं आदि ग्रंथों को अवश्य रखें तथा बच्चों को कभी-कभी उसका पाठ करने के लिए प्रेरित करें तथा उसे आप भी सुनें. क्षत्रिय महापुरुषों का चित्र भी अपने घरों के दीवालों पर लगायें.
३- अपने बच्चों का नामकरण भी पूर्वजों के नाम के अनुरूप रखें तथा नाम के साथ अपनी क्षत्रियता की पहचान के लिए कुलों की उपाधियों को रखना न भूलें, क्योंकि यथानाम तथागुण चरितार्थ होती है. बच्चों में इससे क्षत्रियोचित गुणों का विकास होता है.
४- नाम भी ऐसा रखें जिससे बच्चे अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें. नैतिक शिक्षा एवं अनुशासन का भी पाठ पढ़ायें तथा अपने बच्चों को आज्ञाकारी बनायें.
५-अपने वचन का पालन करें. आदर्श आचरण स्थापित करें तथा अच्छे आचरण के लिए बच्चों के साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरित करें.
६- बच्चों को मर्यादा का उल्लंघन नहीं करने की शिक्षा दें तथा बड़ों का आदर करना सिखाएं.
७. बच्चों को पढने के साथ-साथ खेलने की भी पूरी आज़ादी दें तथा शारीरिक गठन के लिए व्यायाम खेलकूद के लिए भी प्रोत्साहित करें.
८- लड़कियों की शिक्षा में भी कोई कमी या कोताही नहीं बरतें तथा उन्हें हर तरह की शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करें.
९- अगर संभव हो तो दहेज़ रहित शादी करें/कराएँ तथा आदर्श विवाह को प्रोत्साहित करें. शादी-विवाह सादगीपूर्ण तरीके से करें तथा अनावश्यक खर्चों से बचने का प्रयास करें. साधनविहीन एवं आर्थिक रूप से पिछड़े भाई बंधुओं को शादी विवाह आदि में यथासंभव सहयोग करें. सामूहिक शादी का आयोजन कर
फिजूलखर्ची से बच सकते हैं. यदि गाँव में एक ही समाज में कई घरों में शादियाँ हो तो सामूहिक पंडाल बनाकर और सामूहिक भोज का आयोजन कर फिजूलखर्ची पर रोक लगाया जा सकता है.
१०-क्षत्रिय/राजपूत कहने में गौरव का अनुभव करें. स्कूल/कॉलेज/घर/मकान/दुकान/मोहल्ला/मार्ग/संस्था/प्रतिष्ठान आदि का नामकरण भी अपने महापुरुषों के नाम पर करें या राजपूत से सम्बंधित कोई पहचान के नाम पर रखें ताकि क्षत्रियता/राजपूत होने का बोध हो.
११. संकोच या भय का सर्वथा परित्याग करें. साहस का परिचय दें. साहसी एवं दृढ निश्चयी बनें.
१२- पौराणिक परम्पराओं एवं मान्यताओं तथा कुल की मर्यादाओं का सख्ती से पालन करें/कराएँ.
१३- राजपूत जाति के लड़के या लड़कियों का विवाह राजपूत समाज में ही होना श्रयस्कर हो सकता है. अंतरजातीय विवाह संबंधों को कतई प्रोत्साहन नहीं दें. क्योंकि इसके गंभीर परिणाम भविष्य में सामने आते हैं.
१४- इतिहास प्रसिद्द महापुरुषों की जयंतियां सामूहिक रूप से मनाई जाय तथा उनके आदर्शों पर चलने का बार-बार संकल्प करें.
१५- जातीय जीवन को प्रेरणा देने वाले त्योहारों में सबसे महत्वपूर्ण है विजयादशमी का त्यौहार. क्षत्रियों/राजपूतों के लिए इस पर्व से बढ़कर कोई त्यौहार नहीं है. अतएव इस पर्व को हर्षोल्लास के साथ सामूहिक रूप से मनाएं. इस अवसर पर शस्त्रास्त्र प्रदर्शन एवं सञ्चालन,प्रतिस्पर्धा, घुडदौड़, आखेट, सामूहिक खेल, सामूहिक भोज आदि का कार्यक्रम चलाये जा सकते हैं.
१६- शस्त्रास्त्र निश्चित तौर पर प्रत्येक घरों में अवश्य रखा जाय एवं उसका प्रदर्शन समय-समय पर अवश्य करते रहें ताकि आपका मनोबल हमेशा बना रहे.
१७- शादी-विवाह, सभा-सम्मेलनों, सामूहिक त्योहारों में अपने पारम्परिक वेश-भूषा को अवश्य धारण करें. हमारी पारम्परिक वेश-भूषा पगड़ी,शेरवानी, धोती, कुर्ता और तलवार रहा है. अतः शादी-विवाह के अवसरों पर वर पक्ष एवं वधु पक्ष दोनों पारम्परिक वेश-भूषा का इस्तेमाल करें.
१८- सरकारी सेवा में, सेना में, या पुलिस में नौकरी करने वाले अनुशासन, ईमानदारी, कार्यदक्षता और सच्चरित्रता में अपने उच्चाधिकारियों एवं अपने सहयोगियों के सामने आदर्श प्रस्तुत करें, ताकि आपकी श्रेष्टता सब जगह सिद्ध हो सके. सबों को यह आभास हो कि आप सभी स्थानों पर महान क्षत्रिय/राजपूत चरित्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. ऐसा कोई कार्य नहीं करें, जिससे उनकी महान परम्परा, स्थापित मर्यादा व जाति पर कलंक का धब्बा लगे तथा क्षत्रिय/राजपूत जाति बदनाम हो.
१९- नौकरी के अतिरिक्त व्यवसाय में भी ईमानदारी से धर्मपूर्वक धनार्जन करें. ठगने या धोखाघड़ी से धनार्जन का ख्याल मन में भी कभी न लायें.
२०- दलित वर्ग या श्रमजीवी वर्ग, दीन असहाय और पथ विचलित वर्ग की रक्षा कर न्याय और सच्चाई की रक्षा करना क्षात्र-धर्म का मूल सिद्धांत एवं कर्तव्य है, इसका अनुपालन करें.
२१-हमे इस बात का हमेशा ध्यान में रखना है कि क्षत्रिय/राजपूत एक विकसित जाति और कॉम है. हम सभी जातियों में श्रेष्ठ हैं, इसे कदापि नहीं भूलना चाहिए. आपके आचार-विचार से हमारा पूर्ण समाज, प्रदेश एवं राष्ट्र प्रभावित होता है. हिन्दू संस्कृति में जो भी नियम कायदे स्थापित हैं वह
क्षत्रियों/राजपूतों द्वारा स्थापित हैं इसलिए इसका उल्लंघन अपने निर्मित नियमों से ही विचलित होना है. अतएव इसका पालन करना और कराना हमारा पुनीत कर्त्तव्य है, हमारा दायित्व बनता है।

"छँद-रैँणकी""

माण काज मरणौ मँडै,जँग हद जुङै जवान
रजवट रीत रुखाळणा रँग रे राजस्थान!!1!!
कटै वीर धर कारणै प्रण सट्टै दै प्राण
ऐङा नर उपनै अठै रँग रै राजस्थान!!2!!
नर नैकी चूकै नही बौलण एकी बाण
दैखी इण दुनियाँण मेँ रँग रे राजस्थान!!3!!
मरण परण समभाव मन कोई न राखै;
काण दाखै जस सारी दुनी,रँग रे राजस्थान !!4!!
""छँद-रैँणकी""
मानैय इक रीत परण मरण मन उवा धरण है देख इया  मरिया पग रोप राङ बिच माणस,जीवट उर मेँ राख जिया शौभा इण भाँत साँभळी सुरपत ऐरावत चढ जात अयो सुरधर अन्नै अन्नै मरुधर सत जग पर समवङ रुप जयौ!!1!!
पैखो इम वीर धीर प्रण पाळण,सत पख चाढण नीर सदा ऊनी हद खीर दहै कर उणमेँ जुङै भीर न
होय जुदा भाँजण सौ भीङ अबळ पख भिङिया पीङ
निजू नह सोच पयौ सुरधर अन्नै अन्नैव मरुधर सत जग पर समवङ रुप जयौ!!2!!
शरणागत सटै शीश दे सूरा फिर पाछा नही वचन फुरै
धर पर अमर नाम रा धाका घण डाका जस जाप घुरै 
लाखाँ मुख निडर कीरति लाटण दाटण अरियण प्राण
दयौ सुरधर अन्नै अन्नै मरुधर सत जग पर समवङ रुप जयौ!!3!!
🧞‍♂️🧚‍♀️👅🧠

जय क्षात्र धर्म जय राजपुताना

१- ईला न दैणी आपणी, रण खैता भिड़ जायै !
    पूत सिखावै पालणै,मरण बड़ाई माय!!
अर्थात्
राजपूत माता अपनै पुत्र कौ पालनै ही मे मरने की शिक्षा दैती हुई कहती है कि तू रणक्षैत्र मै शत्रु से भीड़ जाना, किन्तु अपनै दैश कि धरती कौ न दैना!!
वही बालक थौडा बड़ा हौनै पर अपनी माता सै कहता है कि
२-माता बालक क्यु कहौ , रौई न माग्यौ ग्रास!
   जौ खग मारू साह सिर,तौ कहीयौ साबास
अर्थात्
  माता! तू मुझै बालक क्यु कहती है? मैनै कभी भी रोकर ग्रास नही मागां! यदि बादशाह कै सीर पर तलवार मारू, तौ शाबास कहना
यही वीर रण क्षैत्र मै अपनी माता कै स्वपन कौ साकार करता है
३-रणकर कर रज रज रगैं,रिवढकै रज हुतं!
   रद जैती धर नही दियै,रज रद व्है रजपूत ।
अर्थात्
रण की रज कौ रक्त सै लाल करकै भी वह वीर एक कण जितनी जमी भी अपनै जिवित रहतै नही दैता।
रण मे जातै समय उसकी वीर पत्नी सचैत कर दैती है
४- पाछा कर मत झाकज्यौ! पग मत दिज्यौ टार
    कट भल जाज्यौ,खैत मे, पण मत आज्यौ हार।
अर्थात्
पतिदैव आप रण मै कटकर मर जाना पर हार कर मत आना।
और वौ वीर क्षत्राणी कहती है कि
५-बिन मरीया ,बीन जितीया, धणी आविया धाम!
   पग पग चुडी पाछटू, जै रावतरी जाम।
अर्थात्
पतिदैव आप बिना मरै या बिना जितै घर आयै तौ मै आपकै कदम कदम पर चुडीया तौड दुगी , और अगर मै ऐसा ना करू, तौ मै असल राजपूत की बेटी नही
और जब वह वीर रण मे शहीद हौ जाता है तब वह वीर क्षत्राणी कहती है
६-भड़ बिण माथै जितियौ, लीलौ धर ल्यायौहा
   सिर भुलयौ भौलौ घणौ, सासुरौ जायौहा
अर्थात्
मैरी सासु का बैटा कितना भौला है जौ अपना सिर रण मे ही भुल कर आ गया
और क्या बखान करै उन वीरागंनाऔ का जौ स्वय् भी तलवार सै रण मे जौहर करती है
७-गौठ गिया सब गैहरा ,बणी अचानक आय!
   सिहंणा जाई सिहंणी, लीधी तैग उठाय।
अर्थात
घर कै सभी मर्द प्रतिभौज मे बाहर गयै है और इसी  बीच युध्द कि स्थिती आ गयी ! फिर कया था? सिंहौ कौ जन्म दैने वाली सिंहाणी(क्षत्राणी)नै तलवार उठा ली।
सत् सत् नमन है वीरांगना क्षत्राणियों।
जय क्षात्र धर्म
जय राजपुताना

वे बेडु री पड़ेरिया कठै...

वे बेडु री पड़ेरिया कठै...
जीणरे माथे घड़ा धरता..
वे घरा री पोलो कठै..
जीणमेँ दाता सा बिराजता..
वे भीत री खुँटिया कठै...
जीणमेँ माणी कृपाण टंगती.
वे पुराणा खाड़ा कठै...
जे दाता ऊ पोता तक चालता
वो रोटी रो हवाद कठै...
जा.. चुला आगे बैन खाता..
वो गाँव रो प्रेम कठैँ...
जो एक दूजा रे काम आवता....
बखत गयो वस्या मनक गय़ा
मिलता न ढ़ुढ़ता वस्या...
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कुँवर लहरसिंह देवड़ा

बखत पलटों मारेला

बखत पलटों मारेला
राजतंत्र फाजों आवेंला
घणों हों गयों अधर्म 
अबैं धर्म आवेंला
घणों हों गयों अंधारों 
अबैं उजाळों वेवेंला
बखत पलटों मारेला
राजतंत्र फाजों आवेंला 
कोई महाराणा कोई शिवा
कोई दुर्गादास बनेला
मती करजों होच मनखा
पग पग खाड़ो खड़केला
चहुँ ओंर ललकार होवेंला
रजपूत री जयकार होवेंला
बखत पलटों मारेला
फाजों राजतंत्र आवेंला 
जय राजपूताणों
ये रजपूती लेंणा आपरे
हिवड़ा नें भावीं वेवें 
तों इण्नें वना काट्या 
आपणा मनखा रे लारें 
मेंलजोल करावों सा 

लहरसिंह देवड़ा चौंहान