शनिवार, 27 जून 2015

देख आज मेवाड़ मही को आड़ावल की चोटी नीली


  • देख आज मेवाड़ मही को आड़ावल की चोटी नीली,

उसकी बीती बात याद कर आज हमारी आंखें गीली ।

जिसके पत्थर-पत्थर में थी जय नादों को ध्वनि टकराई,

जहाँ कभी पनपा था जीवन वहाँ मरण की छाया छाई,

अरे तुम्हारी गोदी में ही भला पली क्या मीरां बाई?

क्या प्रताप था तेरा बेटा तू ही उस की प्यारी माई?

स्वयं वही तू, बतलाती है चारण की वह पोथी पीली,

गत गौरव की कथा याद कर आज हमारी आंखें गीली ।

घाटी-घाटी फिरा भटकता गहन विजन में डाले डेरे उस प्रताप ने सब कुछ सहकर गये तुम्हारे दिन थे फेरे,

पर तू ऐसी हीन हुई क्यों कहाँ आज वे वैभव तेरे? बदल गई है तू ही या तो बदल गये मां साँझ-सबेरे?

आज हमारा शोणित ठंडा आज हमारी नस-नस ढीली,

गत गौरव की कथा याद कर आज हमारी आंखें गीली,

यहाँ जली जौहर की ज्वाला नभ तक जिसकी लपटें फैली जो कल तक था धर्म हमारा आज हमारे लिये पहेली,

यहीं रूप की रानी पद्मा अग्नि शिखा से पुलकित खेली आज विश्व के इतिहासों में अपने जैसी वही अकेली,

जहाँ रक्त की धार बही थी आज वहाँ की धरती पीली,

गत गौरव की बात याद कर आज हमारी आँखें गीली,

मूक खड़ा चितौड़ बिचारा अन्तिम सांसें तोड़ रहा है,

गत गौरव का प्रेत शून्य में टूटे सपने जोड़ रहा है ।

अपने घायल अरमानों को अंगड़ाई ले मोड़ रहा है,

सांय-सांय कर उष्ण हवा मिस उर की आहें छोड़ रहा है,

फिर भी तो मेवाड़ी सोया पी ली उस ने सुरा नशीली,

गत गौरव की बात याद कर आज हमारी आँखें गीली ।

आग  धधकती है सीने मे,

आग  धधकती है सीने मे,
आँखोँ से अंगारे,
हम भी वंशज है राणा के,
कैसे रण हारे...?

कैसे कर विश्राम रुके हम...?
जब इतने कंटक हो,
राजपूत विश्राम करे क्योँ,
जब देश पर संकट हो.
अपनी खड्ग उठा लेते है,
बिन पल को हारे,

आग धधकती है सीने मे...........

सारे सुख को त्याग खडा है,
राजपूत युँ तनकर,
अपने सर की भेँट चढाने,
देशभक्त युँ बनकर..

बालक जैसे अपनी माँ के,
सारे कष्ट निवारे.

आग धधकती है सीने मे...........

धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।

धन्य हुआ रे राजस्थान,जो जन्म लिया यहां प्रताप ने।


धन्य हुआ रे सारा मेवाड़, जहां कदम रखे थे प्रताप ने॥

फीका पड़ा था तेज़ सुरज का, जब माथा उन्चा तु करता था।

फीकी हुई बिजली की चमक, जब-जब आंख खोली प्रताप ने॥

जब-जब तेरी तलवार उठी, तो दुश्मन टोली डोल गयी।

फीकी पड़ी दहाड़ शेर की, जब-जब तुने हुंकार भरी॥

था साथी तेरा घोड़ा चेतक, जिस पर तु सवारी करता था।

थी तुझमे कोई खास बात, कि अकबर तुझसे डरता था॥

हर मां कि ये ख्वाहिश है, कि एक प्रताप वो भी पैदा करे।

देख के उसकी शक्ती को, हर दुशमन उससे डरा करे॥

करता हुं नमन मै प्रताप को,जो वीरता का प्रतीक है।

तु लोह-पुरुष तु मातॄ-भक्त,तु अखण्डता का प्रतीक है॥

हे प्रताप मुझे तु शक्ती दे,दुश्मन को मै भी हराऊंगा।

मै हु तेरा एक अनुयायी,दुश्मन को मार भगाऊंगा॥

है धर्म हर हिन्दुस्तानी का,कि तेरे जैसा बनने का।

चलना है अब तो उसी मार्ग,जो मार्ग दिखाया प्रताप ने॥..

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

मै दुर्गा की जयेष्ट-पुत्री,क्षात्र-धर्म की शान रखाने आई हूँ !

मै सीता का प्रतिरूप ,सूर्य वंश की लाज रखाने आई हूँ!1! 

मै कुंती की अंश लिए ,चन्द्र-वंश को धर्म सिखाने आई हूँ !
मै सावित्री का सतीत्त्व लिए, यमराज को भटकाने आई हूँ !२!

मै विदुला का मात्रत्व लिए, तुम्हे रण-क्षेत्र में भिजवाने आई हूँ !
मै पदमनी बन आज,फिर से ,जौहर की आग भड़काने आई हूँ !३!
मै द्रौपदी का तेज़ लिए , अधर्म का नाश कराने आई हूँ !
मै गांधारी बन कर ,तुम्हे सच्चाई का ज्ञान कराने आई हूँ !४!

मै कैकयी का सर्थीत्त्व लिए ,तुम्हे असुर-विजय कराने आई हूँ !
मै उर्मिला बन ,तुम्हे तम्हारे क्षत्रित्त्व का संचय कराने आई !५!

मै शतरूपा बन ,तुम्हे सामने खडी , प्रलय से लड़वाने आई हूँ!
मै सीता बन कर ,फिर से कलयुगी रावणों को मरवाने आई हूँ!६!

मै कौशल्या बन आज ,राम को धरती पर पैदा करने आई हूँ !
मै देवकी बन आज ,कृष्ण को धरती पर पैदा करने आई हूँ !७!

मै वह क्षत्राणी हूँ जो, महा काळ को नाच नचाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे तुम्हारे कर्तव्य बताने आई हूँ !८!

मै मदालसा का मात्रत्त्व लिए, माता की माहिमा,दिखलाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ जो ,तुम्हे फिर से स्वधर्म बतलाने आई हूँ !९!

हाँ तुम जिस पीड़ा को भूल चुके, मै उसे फिर उकसाने आई हूँ !
मै वह क्षत्राणी हूँ ,जो तुम्हे फिर से क्षात्र-धर्म सिखलाने आई हूँ !१०!
"जय क्षात्र-धर्म "

तुम कुल को क्यों कलकिंत करते हो

क्या जंग लगी तलवारों में, जो इतने दुर्दिन सहते हो I
राणा प्रताप के वंशज हो,क्यों कुल को कलंकित करते हो II
आराध्य तुम्हारे राम-कृष्ण,जो कर्म की राह दिखाते थे I
जो दुश्मन हो आततायी, वो चक्र सुदर्शन उठाते थे I
श्री राम ने रावण को मारा, तुम गद्दारों से डरते हो II
जब शस्त्रों से परहेज तुम्हे,तो राम राम क्यों जपते हो I
क्या जंग लगी तलवारों में,जो इतने दुर्दिन सहते हो II
अंग्रेजों ने दौलत लूटी,मुगलों ने थी इज्जत लूटी I
दौलत लूटी, इज्जत लूटी, क्या खुद्दारी भी लूट लिया,
गिद्धों ने माँ को नोंच लिया,तुम शांति शांति को जपते हो I
इस भगत सुभाष की धरती पर,क्यों नामर्दों से रहते हो?
क्या जंग लगी तलवारों में जो इतने दुर्दिन सहते हो II
हिन्दू हो,कुछ प्रतिकार करो,तुम भारत माँ के क्रंदन का I
यह समय नहीं है, शांति पाठ और गाँधी के अभिनन्दन का II
यह समय है शस्त्र उठाने का,गद्दारों को समझाने का,
शत्रु पक्ष की धरती पर,फिर शिव तांडव दिखलाने का II
इन जेहादी जयचंदों की घर में ही कब्र बनाने का,
यह समय है हर एक हिन्दू के,राणा प्रताप बन जाने का I
इस हिन्दुस्थान की धरती पर ,फिर भगवा ध्वज फहराने का II
ये नहीं शोभता है तुमको,जो कायर सी फरियाद करोI
छोड़ो अब ये प्रेमालिंगन,कुछ पौरुष की भी बात करोII
इस हिन्दुस्थान की धरती के,उस भगत सिंह को याद करो,
वो बन्दूको को बोते थे,तुम तलवारों से डरते होI
क्या जंग लगी तलवारों में जो इतने दुर्दिन सहते हो II

संगठन गढ़े चलो

संगठन गढ़े चलो
सुपंथ पर बढ़े चलो भला हो जिस में देश का वो काम सब किए चलो ।। युग के साथ मिलके सब कदम बढ़ाना सीख लो एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो भूलकर भी मुख से जाति पंथ की न बात हो भाषा प्रान्त के लिए कभी ना रक्त पात हो फूट का भरा घड़ा है फोड़कर भरे चलो भला हो जिस में देश का वो काम सब किए चलो ।। आ रही है आज चारों ओर से यही पुकार हम करेंगे त्याग मातृभूमि के लिए अपार कष्ट जो मिलेंगे मुस्करा के सब सहेंगे हम देश के लिए सदा जिएगें और मरेंगे हम देश का ही भाग्य अपना भाग्य है ये सोच लो भला हो जिस में देश का वो काम सब किए चलो ।।