शनिवार, 3 सितंबर 2016

हींडो

हींडो

कामणगारी रमै तीजण्यां, मौसम मन भरमावै। 
हींड़ै पर चढञ दो दो जणियां, गोडी दे मचकावै।। 
जोर कमर गोडां को, नभ में हींडै की ऊंचाई। 
सावम राचै आय गुवाडां, माचै लोग-लुगाई।। 
लैर्यो उडै चुनड़ कै सागै, हंसै लुगायां गाती। 
गूंजै गीत फुहारां बरसै, वाह भई शेखावाटी।।

अल्हड़ गौरी जोर करै, जद झूलो लचका झेलै। 
झुमको जूल तागड़ी हंसती, साथ कमर कै खेलै।। 
चुहल करै खिल कटिया गारी, मोवै कामण गार्यां। 
मन कै पार उतर ज्यावै, मीठी-मीठी किलकार्यां।। 
सरो उडिकै खड़ी डावड्यां, हींडण नै ललचाती। 
गोडी देतां पल्लो मुख में, वाह भई शेखावाटी।।

उबकली मचकाय मिजाजण, झूलै नै झकझोर। 
पलक झपकतां नापै गजबण, आकासां को छोर।। 
बांथां बांथ मिलै दोनूं, जद लोक लाज छुट ज्यावै।। 
होड़ करै हींडो गौरी सै, कुणपैली आगै जावै।। 
पल्लो उड़ पड़ ज्याय दिखाई, भेद छिपायां नाभी। 
मरयादा ऊपर नीचै की, वाह भई शेखावाटी।।

फरराटा मद मस्त हवा का, आंचल नै उलझावै। 
कोई कमसिन बाला नै, ज्यूं आवारा बहकावै।। 
मिल कांधो-गर्दन गौरी की, उड़ती चुनड़ी जकड़ै। 
हाथां सै लाचार, हींडती पल्लो मुहं सै पकड़ै।। 
काची काची गंध देह की, महंदी मधुर सुहाती। 
बड़ा भाग जुल्मी झूलै का, वाह भई शेखावाटी

बुधवार, 31 अगस्त 2016

मारै चोट नंगारै इंदर, थिरक दामणी नाचै। 

मारै चोट नंगारै इंदर, थिरक दामणी नाचै। 
तोड़ै तान कड़बली-सिट्टा, खेतां गिंदड़ माचै।। 
जंगल-खेत जीव-जड़ हरखै, झिर्मिर मेह बरसतां। 
डमरो फूटै हवा सुवासै, काचर-फली महकतां। 
कैर सांगीर खींपोली, चिरपोटण मीठी-खाटी। 
ऐ कंचनमेवा धरती का, वाह भई शेखावाटी।।

सावण भादो सजल सुरंगा, आसोजां पुरवाई। 
किरै काकड़ी मटकाचरला, रुत मेलांकी आई।। 
फलै फली बध बेलां जामै, लांप मतीरा मिट्ठा। 
हवा चालतां लुलै कड़बली, तान तोड़ाता सिट्टा।। 
रितुआं को रिमझोल अलूंठो उर्वर मरु की माटी। 
सावण आवण घमओ सुहावण, वाह भई शेखावाटी।।

हल सोट्या'र हलाई जोता, कढै ऊमरा ऊंटां। 
ओघड़ा बादल हर्सै बर्सै, जड़ पकड़ै जच बूंटा।। 
तम्बू तमऐ बेल बिरछां, बिछ हर्या गलीचा धरत्यां। 
भादो दे सौगात, मतीरा, सावण सजल बरसतां।। 
खाय कोरड़ा इंदर का, बीजल चिमकै कड़काती। 
जल छिड़कै बादलियो भिस्ती, वाह भी शेखावाटी।।

उमड़़ै ल्हैर हवा चालै, लुल पली फसल लैरावै। 
हंसतो बिछ्या गलीचां पर, मन लोट-पलेटा खावै।। 
रलका दे बरसावै करसो, घमक बाजरो बरसै। 
करै उचावण मनकोरी, मन नाज बरसतां हरसै।। 
मीठा लाल मतीरा काचर, ककड़ी मीठी-खाटी। 
मीणत को फल मिलै धणी नै, वाह भई शेखावाटी।।

पीली-पीली पसरकटाली, लीला फूल धमासै कै। 
फाग चढ़ै फागण में, मस्ती चढ़ च्यावै चौमासै में।। 
आक-धतुरा नसो करडेा, खड्या आड़ ले पेडां की। 
ऐ चोड़ै लिपटाई राखै, लदपद बेल ककेड़ां की।। 
झाला देवै दरखत, बेलां बाड़ डाक चढ़ आती। 
मर्या जियावै परवा चाल्यां, वाह भई शेखावाटी।।

पर्यावरण बिगाडू जन पै, थोर जताती व्यंग। 
के मजला कै हाथ लगाले, ऊभी नंग धडंग।। 
आढ आवरण कांटां को,या खड़ी उधाड्यां पेट। 
पुलिस्यां की वर्दी में जाणी, महिला अपटूडेट। 
झाउलो दे मार सांप नै, पूंछ पकड़ उस काठी। 
आतकी सिर पटक मरै ज्यूं, वाह भई शेखावाटी।।

मादकता पुखाी की, मेघा की मचल मल्हार। 
झिरमिर बर्स मेहो, टण मण टैणां की टणकार। 
टम टम की बरखा बरसै, ऊठ सवांरी तड़कै। 
मुलकै गौरी मनभरियो, परदेसी आवै अबकै।। 
बोजां ऊपर पसर बेलड्यां, रुप छटा छिटकाती। 
मधरा झोटा पेड़ झुलाता, वाह भई शेखावाटी।। 
भरी जवानी सावण सींचै, बावड़ बरसै भादो। 
आस्योजां में बूढो बादल, मोती पटकै जातो।। 
साथ उमर कै जयां आपको, बदलै कोई पंथ। 
खड़ी देखती रह्वै गौरड़ी, साजन बणतां संत।। 
बालपणो दे ज्याय जवानी, फेर बुढ़ापो लाठी। 
कुदरत की फितरत है न्यारी, वाह भई शेखावाटी।।

धरा तपै बैसाख जेठ, जद धिर चोमासो आवै। 
मेट बाबो सिर पोट बांध, धर फली काचरा ल्यावै।। 
चंदो बाबो पोली दे, अर घी को भर्यो कचोलो। 
आदो लाडू आवै ना, सो पांती आवै दोरो।। 
घाणी-माणी घाल टाबरी, रामारोल मचाती। 
बाबोजी को सुगण लोटियो, वाह भाई शेखावाटी।।

झुलस मिटै धरती की, सावण बूढ़ै करै फुवार। 
काजलिया बादल बरसै, रै घटाटोप इकसार।। 
झूलै पर चढ़ उड़ै उमंगां, झिरमिर बरसै मेह। 
रुत पावस की आय, धरा नै हरी भरी करदे।। 
रंगसाला में थरिक नाचती, आभै में दमकाती। 
बीजल रंग भरै घुप रातां, वाह भई शेखावाटी।।

सूर्यो सजल करै सवाण, भादो परवा दे बाला। 
जोह्ड़ां सै आलिंगल करती, नदी डाकती नाला।। 
सुरज कुंडालो चांद जलेरी, तीतर पंखी बादल। 
सज ताकै बिरखा नै, जाणी विधवा राच'र रकाजल।। 
आस्योजां बावड़ पछवाई, बिरखा ल्यावै जाती। 
गाड़ां भरै नाज का कोठा, वाह भई शेखावाटी।।

भर जोबन में नदी अकड़ती, चाली आवै दौड़। 
जाणी रुपसी ले अंगड़ाई, सगलो अंग मरोड़।। 
खड्या उड़ी कै निरा तिसाया, बांह पसार्यां बांध। 
मिल गाढा छक ज्यावै, फेरूं चादर चालै लांघ।। 
झिरमिरियो सो लूंठो मौसम, सिट्टी हवा बजाती। 
परवा बैरण पीर जगावै, वाह भई शेखावाटी।।

सावण बरस्यां मिटै सायबा, लगी धरा की जूल। 
मुलकै ऊबा खड्या रुंखड़ा, बेलां पसरै फूल।। 
घमओ तावड़़ो पड़ै जेठ में, बदन ज्याय कुमलाय। 
आस बंधै आसाढ़ आवतां, मिटै हिये की लाय।। 
नर महना आसोज-भादवो, फेरूं आवै काती। 
ओ मौस मेली मेलां को, वाह भई शेखावाटी।।

मिलन आंख को करवावै, आकरसण को ऐसास। 
बिन बोल्यां पलकां दरसावै, अंतसमन की प्यास।। 
मेल-बिछोह परसपर दोनूं है जीवन का खेल। 
बड़ो मजो मेलां में यारो, होकर धक्कम पेल।। 
बरसां का मिलबा का वादा, यारी टीस जगाती। 
सावण को मतवालो मौसम, वाह भई शेखावाटी।।

बिजली सी चिमकै चेतन में याद कर्यां बै बांता। 
पलकां झपक्या करती कोनी, घुली धुली सी'र रातां।। 
मन नादीदो नैण तिसाया, कान तरसता नेह। 
चातक कोई तकै उड़िकै, बिन मौसम को मेह।। 
सांस सांम में भरी गुदगुदी, हो री मन में खाटी। 
रै सावण ले आव सजन नै, वाह भई शेखावाटी।।

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 
हियै-कालजै ही थाह टपकै, गीत घणा उममानी।। 
गीता आत्मा गीत धरोहर, गीत भावना जन की। 
गीतां में मरुजीवन मुलकै, गीत कथा मरुमन की।। 
ऊंच चढ़ै पातलियो ढोलो, मारू मन की थाती। 
मन की उपज निपज गीतड़ला, वाह भई मालाणी

कुरजा, लैर्यो, लूर पीपली, पीलो चंग धमाल। 
मुरलो, मूमल, हंजामारू, रस का गीत कमाल। 
रखड़ी-जकड़ी, बिणजारो, रामू-चनणा का बोल। 
सगी-सगा सै करै ठिठोली, ऐ तो मिलै न मोल।। 
पीढ़ा घाल'र लगै सीठणा, गीतां की परिपाटी। 
साल्यां छेड़ करै जीजा सै, वाह भई मालाणी

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

पार किया पड़सी

दो पग आगा,दस पग पाछा,इयां कियां पार पड़ेली
दस है कूड़ा,दो है साचा, इयां कियां पार पड़ेली

कपडछाण जे करो सांच रो,हाथ कंई नई आवेला
मुंडा माथा,कूड़ा साथा, इयां कियां पार पड़ेली

जोर जमायो कुरसी तांई,दौड़ लगायी कुरसी तांई
करयां ऊंधा साटा-बाटा,इयां कियां पार पड़ेली

मिनाखाचारो रूंख लटकियो,यारी पड़गी कूवे मांई
कूवे भांग घुली है यारां,इयां कियां पार पड़ेली

आंगणिया खाली-खाली है,गली-गवाडां स्यापो पड़ग्यो
बरणाटा मारे सरणाटा,इयां कियां पार पड़ेली

चमक उतरगी धोरां री,सै धोला धट्ट होयग्या है
गाँव आंवता सैरां मांई,इयां कियां पार पड़ेली

मंगलवार, 10 मई 2016

अरे भाई क्या तुम भी राव जोधा की तरह महामूर्ख हो

गांवों में अक्सर एक साधारण सा आदमी जिसने न तो पढ़ाई लिखाई की हो और न ही कहीं बाहर घुमा हो, किसी बड़े मुद्दे पर एक छोटी सी बात बोलकर इतनी बड़ी सलाह दे जाता है कि सम्बंधित विषय के बड़े-बड़े जानकार भी सुन कर चकित हो जाते है, उसकी छोटी सी चुटीली बात में भी बहुत बड़ा सार छुपा होता है | मै यहाँ एक ऐसी ही छोटी सी बात का जिक्र कर रहा हूँ जिस बात ने अपने खोये पैत्रिक राज्य को पाने के लिए संघर्ष कर रहे एक राजा का इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि वह इस छोटी बात से सबक लेकर अपनी गलती सुधार अपना पैत्रिक राज्य पाने में सफल हुआ |
मै यहाँ जोधपुर के संस्थापक राजा राव जोधा की बात कर रहा हूँ | यह बात उस समय की जब राव जोधा के पिता और मारवाड़ मंडोर के राजा राव रिड़मल की चित्तोड़ में एक षड़यंत्र के तहत हत्या कर मेवाड़ी सेना द्वारा मंडोर पर आक्रमण कर कब्जा कर लिया गया | मंडोर उस समय मारवाड़ की राजधानी हुआ करती थी | राव जोधा ने अपने भाईयों के साथ मिलकर अपने पिता के खोये राज्य को पाने के लिए कई बार मंडोर पर हमले किए लेकिन हर बार असफल रहा |
उसी समय राव जोधा मेवाड़ की सेना से बचने हेतु एक साधारण किसान का वेश धारण कर जगह-जगह घूम कर सेन्ये-संसाधन इक्कठा कर रहे थे | एक दिन कई दूर चलते-चलते घुमते हुए भूखे प्यासे हताश होकर राव जोधा एक जाट की ढाणी पहुंचे, उस वक्त उस किसान जाट की पत्नी बाजरे का खिचड़ा बना रही थी,चूल्हे पर पकते खिचडे की सुगंध ने राव जोधा की भूख को और प्रचंड कर दिया | जाटणी ने कांसे की थाली में राव जोधा को खाने के लिए बाजरे का गरमा -गर्म खिचड़ा परोसा | चूँकि जोधा को बड़ी जोरों की भूख लगी थी सो वे खिचडे को ठंडा होने का इंतजार नही कर सके और खिचड़ा खाने के लिए बीच थाली में हाथ डाल दिया, खिचड़ा गर्म होने की वजह से राव जोधा की अंगुलियाँ जलनी ही थी सो जल गई | उनकी यह हरकत देख उस ढाणी में रहने वाली भोली-भाली जाटणी को हँसी आ गई और उसने हँसते हुए बड़े सहज भाव से राव जोधा से कहा -
" अरे भाई क्या तुम भी राव जो
धाकी तरह महामूर्ख हो " ?
राव जोधा ने उस स्त्री के मुंह से अपने बारे में ही महामूर्ख शब्द सुन कर पूछा - " राव जोधा ने ऐसा क्या किया ? और मैंने ऐसा क्या किया जो हम दोनों को आप महामूर्ख कह रही है "?
तब खेतों के बीच उस छोटी सी ढाणी में रहने वाली उस साधारण सी स्त्री ने फ़िर बड़े सहज भाव से कहा-- " जिस प्रकार राव जोधा बिना आस-पास का क्षेत्र जीते सीधे मंडोर पर आक्रमण कर देता है और इसी कारण उसे हर बार हार का मुंह देखना पड़ता है, ठीक उसी तरह मेरे भाई तुमने भी थाली में किनारे ठंडा पड़ा खिचड़ा छोड़कर बीच थाली में हाथ डाल दिया, जो जलना ही था |इस तरह मेरे भाई तुमने भी राव जोधा की तरह उतावलेपन का फल हाथ जलाकर भुक्ता |
उस साधारण सी खेती-बाड़ी करने वाली स्त्री की बात जो न तो राजनीती जानती थी न कूटनीति और न युद्ध नीति ने राव जोधा जैसे वीर पुरूष को भी अपनी गलती का अहसास करा इतना बड़ा मार्गदर्शन कर दिया कि राव जोधा ने उसकी पर अमल करते हुए पहले मंडोर के आस-पास के क्षेत्रों पर हमले कर विजय प्राप्त की और अंत में अपनी स्थिति मजबूत कर मंडोर पर आक्रमण कर विजय प्राप्त कर अपना खोया पैत्रिक राज्य हासिल किया, बाद में मंडोर किले को असुरक्षित समझ कर राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव डाल अपने नाम पर जोधपुर शहर बसाया

The truth of Mughal-Rajput marital relationship

आदि-काल से क्षत्रियों के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्व को चुनौती देते आये है। किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलतापूर्वक करते रहे है। कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था, क्षत्रियों से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रों को रचते रहे। कुरुक्षेत्र के महाभारत में जब अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली, उसके बाद से ही क्षत्रिय इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया। इतिहास में क्षत्रिय शत्रुओं को महिमामंडित करने का भरसक प्रयास किया गया ताकि क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जा सके। किन्तु जिस प्रकार हीरे के ऊपर लाख धूल डालने पर भी उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती, ठीक वैसे ही क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा। फिर धार्मिक आडम्बरों के जरिये क्षत्रियों को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ, जिसमंे शत्रओं को आंशिक सफलता भी मिली। क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए क्षत्रिय इतिहास को कलंकित कर क्षत्रियों के गौरव पर चोट करने की दिशा में आमेर नरेशों के मुगलों से विवादित वैवाहिक सम्बन्धों (Amer-Mughal marital relationship) के बारे में इतिहास में भ्रामक बातें लिखकर क्षत्रियों को नीचा दिखाने की कोशिश की गई। इतिहास में असत्य तथ्यों पर आधारित यह प्रकरण आमजन में काफी चर्चित रहा है।


इन कथित वैवाहिक संबंधों पर आज अकबर और आमेर नरेश भारमल की तथाकथित बेटी हरखा बाई (जिसे फ़िल्मी भांडों ने जोधा बाई नाम दे रखा है) के विवाह की कई स्वयंभू विद्वान आलोचना करते हुए इस कार्य को धर्म-विरुद्ध और निंदनीय बताते नही थकते। उनकी नजर में इस तरह के विवाह हिन्दू जाति के आदर्शों की अवहेलना थी। वहीं कुछ विद्वानों सहित राजपूत समाज के लोगों का मानना है कि भारमल में अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अकबर से अपनी किसी पासवान-पुत्री के साथ विवाह किया था। चूँकि मुसलमान वैवाहिक मान्यता के लिए महिला की जाति नहीं देखते और राजपूत समाज किसी राजपूत द्वारा विजातीय महिला के साथ विवाह को मान्यता नहीं देता। इस दृष्टि से मुसलमान, राजा की विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को उसकी संतान मानते है। जबकि राजपूत समाज विजातीय महिला द्वारा उत्पन्न संतान को राजपूत नहीं मानते, ना ही ऐसी संतानों के साथ राजपूत समाज वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करते है। अतः ऐसे में विजातीय महिला से उत्पन्न संतान को पिता द्वारा किसी विजातीय के साथ ब्याहना और उसका कन्यादान करना धर्म सम्मत बाध्यता भी बन जाता है। क्योंकि यदि ऐसा नही किया गया जाता तो उस कन्या का जीवन चौपट हो जाता था। वह मात्र दासी या किसी राजपूत राजा की रखैल से ज्यादा अच्छा जीवन नहीं जी सकती थी।

भारमल द्वारा अकबर को ब्याही हरखा बाई का भी जन्म राजपूत समाज व लगभग सभी इतिहासकार इसी तरह किसी पासवान की कोख से मानते है। यही कारण है कि भारमल द्वारा जब अकबर से हरखा का विवाह करवा दिया तो तत्कालीन सभी धर्मगुरुओं द्वारा भारमल के इस कार्य की प्रसंशा की गयी। इसी तरह का एक और उदाहरण आमेर के इतिहास में मिलता है। राजा मानसिंह द्वारा अपनी पोत्री (राजकुमार जगत सिंह की पुत्री) का जहाँगीर के साथ विवाह किया गया। जहाँगीर के साथ मानसिंह ने अपनी जिस कथित पोत्री का विवाह किया, उससे संबंधित कई चौंकाने वाली जानकारियां इतिहास में दर्ज है। जिस पर ज्यादातर इतिहासकारों ने ध्यान ही नहीं दिया कि वह लड़की एक मुस्लिम महिला बेगम मरियम की कोख से जन्मी थी। जिसका विवाह राजपूत समाज में होना असंभव था।


कौन थी मरियम बेगम
इतिहासकार छाजू सिंह के अनुसार ‘‘मरियम बेगम उड़ीसा के अफगान नबाब कुतलू खां की पुत्री थी। सन 1590 में राजा मानसिंह ने उड़ीसा में अफगान सरदारों के विद्रोहों को कुचलने के लिए अभियान चलाया था। मानसिंह ने कुंवर जगत सिंह के नेतृत्व में एक सेना भेजी। जगतसिंह का मुकाबला कुतलू खां की सेना से हुआ। इस युद्ध में कुंवर जगतसिंह अत्यधिक घायल होकर बेहोश हो गए थे। उनकी सेना परास्त हो गई थी। उस लड़की ने जगतसिंह को अपने पिता को न सौंपकर उसे अपने पास गुप्त रूप से रखा और घायल जगतसिंह की सेवा की। कुछ दिन ठीक होने पर उसने जगतसिंह को विष्णुपुर के राजा हमीर को सौंप दिया। कुछ समय बाद कुतलू खां की मृत्यु हो गई। कुतलू खां के पुत्र ने मानसिंह की अधीनता स्वीकार कर ली। उसकी सेवा से प्रभावित होकर कुंवर जगतसिंह ने उसे अपनी पासवान बना लिया था। प्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘दुर्गेशनंदिनी’’ में कुंवर जगतसिंह के युद्ध में घायल होने व मुस्लिम लड़की द्वारा उसकी सेवा करने का विवरण दिया है। लेकिन उसने उस लड़की को रखैल रखने का उल्लेख नहीं किया। कुंवर जगतसिंह द्वारा उस मुस्लिम लड़की बेगम मरियम को रखैल (पासवान) रखने पर मानसिंह कुंवर जगतसिंह से अत्यधिक नाराज हुए और उन्होंने उस मुस्लिम लड़की को महलों में ना प्रवेश करने दिया, ना ही रहने की अनुमति दी। उसके रहने के लिए अलग से महल बनाया। यह महल आमेर के पहाड़ में चरण मंदिर के पीछे हाथियों के ठानों के पास था, जो बेगम मरियम के महल से जाना जाता था। कुंवर जगतसिंह अपने पिता के इस व्यवहार से काफी क्षुब्ध हुये, जिसकी वजह से वह शराब का अधिक सेवन करने लगे। मरियम बेगम ने एक लड़की को जन्म दिया। कुछ समय बाद कुंवर सिंह की बंगाल के किसी युद्ध में मृत्य हो गई। इस शादी पर अपनी पुस्तक ‘‘पांच युवराज’’ में लेखक छाजू सिंह लिखते है ‘‘मरियम बेगम से एक लड़की हुई जिसकी शादी राजा मानसिंह ने जहाँगीर के साथ की। क्योंकि जहाँगीर राजा का कट्टर शत्रु था, इसलिए उसको शक न हो कि वह बेगम मरियम की लड़की है, उसने केसर कँवर (जगतसिंह की पत्नी) के पीहर के हाडाओं से इस विवाह का विरोध करवाया। किसी इतिहासकार ने इस बात का जबाब नहीं दिया कि मानसिंह ने अपने कट्टर शत्रु के साथ अपनी पोती का विवाह क्यों कर दिया? जबकि मानिसंह ने चतुराई से एक तीर से दो शिकार किये- 1. मरियम बेगम की लड़की को एक बड़े मुसलमान घर में भी भेज दिया। 2. जहाँगीर को भी यह सन्देश दे दिया कि अब उसके मन में उसके प्रति कोई शत्रुता नहीं है। जहाँगीर के साथ जगतसिंह की मुस्लिम रखैल की पुत्री के साथ मानसिंह द्वारा शादी करवाने का यह प्रसंग यह समझने के लिए पर्याप्त है कि इतिहास में मुगल-राजपूत वैवाहिक संबंध में इसी तरह की वर्णशंकर संताने होती थी, जिनका राजपूत समाज में वैवाहिक संबंध नहीं किया जा सकता था। इन वर्णशंकर संतानों के विवाहों से राजा राजनैतिक लाभ उठाते थे। जैसा कि छाजू सिंह द्वारा एक तीर से दो शिकार करना लिखा गया है। एक अपनी इन संतानों को जिन्हें राजपूत समाज मान्यता नहीं देता, और उनका जीवन चौपट होना तय था, उनका शासक घरानों में शादी कर भविष्य सुधार दिया जाता, साथ ही अपने राज्य का राजनैतिक हित साधन भी हो जाता था। इस तरह की उच्च स्तर की कूटनीति तत्कालीन क्षत्रिय समाज ने, न केवल समझी बल्कि इसे मान्यता भी दी। यही कारण है कि हल्दीघाटी के प्रसिद्द युद्ध के बाद भी आमेर एवं मेवाड़ के बीच वैवाहिक सम्बन्ध लगातार जारी रहे

तूं ठाकर दीवाण तूं, तो ऊभै सोह कज्ज। राज सिधारौ मालवे, करण मरण बळ लज्ज।।



कूंपौ कैवै-

राव मालदेव मारवाड़ रौ इज नीं महाराणा संग्रामसिंघ मेवाड़ रै पछै आखा राजस्थान रौ अेकलो अैड़ौ राजा हुवौ जिकौ दिल्ली रा बादसा सेरसाह सूं खंवांठौरी किवी। भटभेड़ी लिवी। राव मालदेव रौ संवत 1568 में जळम हुवौ नै 1588 में जोधपुर री गादी माथै बैठियौ। उण समै जोधपुर रै हेटै सोजत अर जोधपुर दो इज पड़गना हा। मारवाड़ रा पौकरण, फळोधी, बाड़मेर, कोटड़ा, खेड़, महेवा, सिवाणा, मेड़ता, नागौर आद आखा पड़गनां में आपरै आपेधापे रा राजा, राव, नबाब राजा हा। मालदेव रौ राज उण समै जाबक छोटौ-सौ हुंतौ। सगळा आपैथापै राजा बणिया राज करता। कोई किणी रौ ग्यान गिंनार नीं करतौ। केन्द्रबळ रै रूप में कठैई सकती रौ जोड़-तोड़ नीं हौ। राव मालदेव नै मारवाड़ रा बीजा भाई बंध सासकां रो मनमता पणौ अबखौ लखायौ। नै गादी पर बैठतां ई मालदेव सगळां सूं पैली आपरा गोतर भाई राठौड़ां में जिका री थोड़ीघणी लोळ उणा रै साथ लखाई सांकड़ा लिया। आप री सेना रौ संगठण कियौ। विरोध राखण वाळां माथै सनी दीठ पड़ी। सगळां सूं पैली भादराजूण पर धावौ मार उण नै जोधपुर नीचे घाली। पछै कांकड़ सींवाळी रा अड़सगारा मेड़ता रा दूदावतां रै लार हुवौ। मेड़ता रौ धणी राव वीरमदे भी आग रौ पूळौ, बूंदी रा झाड़ां रौ बाघ, इंदर रौ बजराक, संकर रौ तीजौ नेतर, दु्रवासा रौ कोप नै भीम रा आपांण रौ सांपरत मूरत हो। रहणी-कहणी रौ खरौ नै खारौ। पछै कांई ढील। पाथर सूं पाथर भिड़ै जद तौ आग इज निकलै। जोधपुर नै मेड़तौ बेहूं कैरव पखधारी करण नै पांडूपूत अरजण रै लगैढगै। जैड़ा राव वीरमदेव रा जोधा रायमल, रायसल, ईसरदास, जयमल्ल, वीठळदास, सांवळदास नै अरजण उणी भांत रा राव मालदेव रा पखधर राव जैतौ, कूंपौ, रतनसी, पंचायण, अखैराज, प्रथीराज, देईदास, मेघराज अेक सूं अेक आगळा। रण रा रसिया। काळी रा कळस। जमराज रा जेठी जिका औसर माथै नीं तांणै हेटी। जमदूत रै इज ठोकै भेटी। सांस रा सहायक। सैणां रा सैण। खळां रा खोगाळ। रण भारथ रा भोपाळ। सिंघ री झपट, बाराह री टूंड री टक्कर। संपा रा सळाव री भांत दुसमणां रै माथै बजराक गैरबा में सैंठा।


मेड़ता री रणभौम में हजारां जोधारां री मुंडकियां थळी रा मतीरां ज्यूं गुड़ी। हजारां घोड़ां हाथियां रौ कचरघांण हुवौ। राव मालदेव जीतिया। मेड़़तिया हारिया। पछै राव मालदेव री सेना मेड़ता सूं धकै बध नै अजमेर माथै भी आपरौ हांमपाव कियौ। मारवाड़ में नागौर पर जद खानजादां रो राज हुंतौ। राव मालदेव नागौर नै जीतण रा ताका मौका जोवै इज हौ। नागौर रौ खान राव मालदेव रा भावंडा रा थाणायत माथै धावौ मार नै उणनै मार लियौ। पछै कांई हौ। ऊंधे ही नै बिछायो लाधौ। आपरा सेनापति कूंपा नै मेल नै खान नै पछाड़ अर नागौर दाब लिधी। सीवाणा रा धणी डूंगरसी नै तौ आघौ ताड़ियौ नै सीवाणा रा किला नै पड़गना नै भी मारवाड़ रै दाखल कियौ। सीवाणा पछै जालौर री सायबी भी सिकन्दरखां नै खोड़ा में घाल खोस लिवी।

राव मालदेव इण भांत जोधपुर रा आड़ौस-पाड़ौस रा सासकां नै ठौड़ ठिकाणै लगा, उणा रौ राज खोस अर पछै बीकानेर माथै घोड़ा खड़िया। घणा जबरा राटाका रै पछै बीकानेर रा धणी जैतसी नै रण सैज पौढ़ाय बीकानेर माथै भी आपरौ कबजौ जमायौ।

अठी नै तो राव मालदेव मारवाड़ माथै एक छत्र राज जमा रियौ ही अर उठी नै दिल्ली में मुगल पातसाह हुमायूं नै रणखेत में पछाड़नै अफगान सेरसाह सूर दिल्ली में तप रियौ हौ। सेरसाह सूरवीरता में सम्रथ। न्याव में नौसेरवां रौ औतार। पाणी पैली पाळ बांधै जैड़ौ। मालदेव रै प्रताप री बातां सांभळ नै मालदेव रा दोखी राव वीरमदेव अर राव कल्याणमल बीकानेरिया नै छाती लगाया। पछै अस्सी हजार घोड़ां री, हाथियां री, तोपखानां री फौज सजा मारवाड़ पर धारोळियौ। राव मालदेव भी आपरी रण बंकी सेना रा साठ हजार घोड़ा लेय नै सांमै चढ़ियौ। अजमेर री पाखती गिरी समेल कनै दोना फौजां रा डेरा हुवा। म्हीनै खांड ती फौजां आमनै-सामनै डेरा रोपियां पड़ी रैयी। पछै अेक दिन आखतौ व्हैने वीरवर कूंपै राव मालदेव नै राड़ रा चौगान सूं काढ़ नै जोधपुर भिजवा दियौ। कैंणगत है- लाख मरौ पण लाख नै पोखाणियौ नीं मरौ। सो, जबरा-जबरी राव मालदेव नै कूंपै समेल सूं जोधपुर भेज दियौ। साख रौ दूहौ है-

कूंपौ कैवै-

तूं ठाकर दीवाण तूं, तो ऊभै सोह कज्ज।
राज सिधारौ मालवे, करण मरण बळ लज्ज।।


राजा जी थां जीवै सारा थोक है। थां राठौडां रा धणी हौ। इण वास्तै राड़ सूं निकळ परा जावौ नै जुद्ध री लाज नै भरभार कूंपा पर छोड़ो।
पछै राठौड़ जैतो, राठौड़ कूंपौ, राठौड़ ऊदौ जैतावत, खींवौ ऊदावत, पंचायण करमसोत, जैतसी ऊदावत, जोगौ अखैराजोत, वीदौ भारमलोत, भोजराज पंचायणोत, अखैराज सोनगिरौ, हरपाळ जोधावत आद राव मालदेव रा बतीस उमराव आपरी बीस हजार फौज साथ ले सेरसाह री अस्सी हजार सेना सूं जाय भेटी खायी। पातसाही फौज नै रोदळ नै कण-कण री बखेर दिवी। राव मालदेव रा घना जोधार काम आया। अेक बीजो सौ महाभारत हुवौ। मिनखां, घोड़ां नै हाथियां रा धड़ां, पिंडा, चुळियां, नळियां, मुंडा, कबंधा रा पंजोळ लाग गया। राठौड़ रण सागर नै मचोळ नै काम आया। दिल्ली मंडळ रौ धणी रण रौ चकाबौ देख नै कैयो- अेक मूठी बाजरी रै खातर दिल्ली री सायबी खोइज ही।

राव मालदेव रा जोधारां रै रण रा चित्राम कवीसरां घण कोरिया है। राव अखैराज सोनगरा रै जुद्ध नै धाकड़ कबड्ड़ी री संग्या देवतै थकै कैयौ है-
फुरळंतां फौजांह, ढालां गयंद ढढोळतां।
रमियौ सर रौदांह, धाकड़ कबड्डी धीरउत।।

राठौड़ नगौ भारमलोत तौ सांप्रत काळौ नाग इज हुंतौ। उण री तरवार रौ डंक लागै पछै जीवणौ दूभर, फेर भी वौ दुसमण रूपी गारुड़ी रै बंधाण में नी आयौ-
देव न दांणव दीठ, अरक कहै भड़ अेहवौ।
नगियौ काळौ नाग, गारूड़वां ग्रहिजै नहीं।।
धावां सूंछक नै नगौ रण पड़ियौ, पण जीवतौ बचियौ।


समेळ रौ झगड़ौ मारवाड़ में वड़ी लड़ाई रै नांव सुं ओळखीजै। इण राड़ में राव मालदेव रा घणा जोधार काम आया। पछै सेरसाह समेळ सूं कूचकर मेड़ता अर जोधपुर माथै आयौ। जोधपुर रा किला नै फतै कर पाछौ गयौ। पण मालदेव निचलौ बैठणियौ नीं हौ। सेरसाह रै फोत हुंवतांई पाछौ जोधपुर आय दाबियौ। आप री फौज पाछी बणाई। जुद्ध रा साज सामान, घोड़ा रजपूत सिलह बणाय नै अजमेर पर काटकियौ। अजमेर माथै हाजीखां पठाण राज करै। हाजीखां आपरै बळू मेड़ता रा धणियां अर मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ नै बुलायौ। अठी नै प्रथीराज जैतावत नै सेनानायक बणाय राव मालदेव अजमेर माथै फौज मेली। अैड़ै समै में प्रथीराज नै अजमेर पर मोकळती वेळां कैयौ-

पीथा पांणेजेह, आळोजे कहियौ इसौ।
भुइ ताहरे भुजेह, जैत तणा जोधां तणी।।

राव मालदेव विचार करती थकौ कैयौ- हे प्रथीराज जैतावत ! जोधां री औलाद री आ मारवाड़ री भौम थांरै इज भुजपांण माथै है।
एक दळ आहाड़ांह, दळ एक दुरवेसां तणा।
मांही भेड़तियाह, कळि करतां त्रीजोइ कटक।।


अजमेर में प्रथीराज घणौ पराक्रम दिखायौ। राव मालदेव री बात राखी। पछै वि. सं. 1610 में मेड़ता में राव जयमल रै साथ रै जुद्ध में बाज मुवौ। प्रथीराज रै काम आयां पछै राव मालदेव आपरौ सेनापत पणौ प्रथीराज रा छोटा भाई देईदास जैतावत नै सौंपियौ। देईदास राव मालदेव रौ सेनापत बण घणां-घणां धौंकळ किया। सं. 1616 में जाळौर माथै फौजकसी करी। जालौर रा पठाण धणी मलिक बूढण ‘मलिकखां बिहारी नै हराय नै जाळौर नै जोधपुर नीचे घाली। पछै बादसाह अकबर आपरा सेनानायक सरफुदीन हुसैन मिर्जा नै राव जैमल री मदत मेड़ता माथै मेलियौ। देईदास, मेड़तिया जैमल अर उण री पक्ष री बादसाही सेना सूं भिड़ गयौ। महाभयांणक राड़ी हुवौ। घणा लड़ेता खेत रैया। कह्यौ है-

विगतौ करे व्रहास, ढालां मुडै ढोईयौ।
दुसासण दहु चहु दळे, दीठौ देवीदास।।
कळळियौ कविलास, समहर किरमाळां सरस।
जैत समोभ्रम जागियौ, दणियर देवीदारा।।
तूं तेजीयै सपताास, भीड़ै जुध करिबा भणी।
सातै हींसारव हुवै, दीपै देवीदास।।


दुसासण रै समान वीरता प्रगट करतौ देईदास वैरियां रा दळां में ओपियौ। राव जैता रौ कुळोधर देईदास सत्रु सेना रूपी अंधेरा नै नासतौ सूरज री भांत दीखियौ। देईदास रै घोड़ा रै हींसारव री हणहणाट सातौं दीपां में सुणीजी। अैड़ौ पराक्रम धणी देईदास जैतावत राव मालदेव निमत मेड़तै काम आयौ। राजस्थान में राव मालदेव एक अजोड़ राजा हुवौ। दिल्ली रा अफगान नै मुगल पातसाहां री सेना सूं लोह रटाका लिया। मरु देस री सीमावां रो घणौ विस्तार कियौ। रात दिन खेड़-खेटा करतौ थकौ भी कदै निरास नै उदास नीं हुवौ।

राव मालदेव जुद्ध इज नीं लड़िया मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ गढ़-कोटां, जीवरखां रा भी घणा निर्माण किया। प्रजा रै खातर कूवा-बावड़ियां खिंणाई। उण री सखरी प्रत पाळणा किवी। जद ई तौ राजस्थान रा ख्यातकारां राव मालदेव नै मंडळीक राजा, हिन्दुवां रौ पातसाह कैय नै चितारियौ है। कवि आसौ बारहठ राव मालदेव रै पुरसारथ रौ वरणन करते थकै कैयौ है-

कवण क्रिसन पति सबळ, काळ पति कवण अंगजित।
प्रिथीपत कंुण बाणपत, सुरपत कवण सतेजति।।
कवण नाथपति जीत, कवण केसवपति दाता।
सीतापति कुण सीत, कवण लखमण पति भ्राता।।
सबळ को अवर सूझै नहीं, जाचिग जंपै सयल जण ।
हिन्दुवां मांहि ओ हिन्दुवौ, मालपति मोटौ कवण।।


इण संसार में अगन सूं बढ नै सबळ कुंण हुवौ है। जमराज रै बिना अगंजित कुंण है। धनखधर अरजण सूं पराक्रम बळी कुंण हुवौ है। देवपति इन्द्र सूं ज्यादा वडौ राजा कुंण है। गोरखनाथ रै सिवाय वडौ जति कुंण हुवौ, भगवान् केसोराय सूं इधकौ दातार कुंण नै सीतामाता जैड़ी सती नै लिछमण सरीखौ भाई बीजौ कुंण हुवौ। इणां रै जोड़ रौ राव मालदेव रै बिना दूजौ कोई हिन्दूपति नीं दीखै।

राव मालदेव गादी बैठा जद फगत दोय पड़गनां रौ धणी ही अर पछै तैतीस पड़गना जीत नै मारवाड़ रा राज रौ बिस्तार कियौ। राव मालदेव जिका-जिका तुंबां पड़गना खाटिया उणा रा ख्यातां बातों में नांववार बखाण मिळे है। सुणीजै-

महि सोजत ली माल, भाल लियौ मेड़तौ।
माल लियौ अजमेर, सीम सांभर सहेतौ।।
बांको गढ़ बदनौर, माल लीधौ दळ मेले।
राइमाल रायपुर लियौ, भाद्राजण भेळे।।
नागौर निहचि चढ़ि नळै, खाटू लीधी खड़ग पणि।
तप पांण हुवौ गांगा तणौ, धींग मालदे सैंधणी।।
लोड लियौ लाडणूं, दुरंग लीधौ डिडवाणौ।
नयर फतैपुर नाम, आप वसि कियौ आपांणौ।।
कमधज लई कासली, रूक बळ लियौ रेवासौ।
चांप लई चाटसू, मुक्यौ वीरभाण मेवासौ।।
जड़ळग पण जाजपुर लियौ, गह छांडे कुंभौ गयौ।
मालदे लियौ मंदारपुर, लियौ टांक टोडो लियौ।।


इता ही इज नीं राव मालदेव सिवाणौ, जाळौर, सांचौर, भीनमाळ, बीकानेर फलोधी, पोकरण, उमरकोट, कोटडा़ै, बाड़मेर, चौहटण आड़ घणा पड़गना जीत नै मारवाड़ रै सामिळ किया।

मेवाड़ रा पासवानिया बणवीर नै चित्तौड़ सूं बारै काढ़ नै राणा उदैसिंघ नै चीतौड़ रौ घणी थरपबा में मदद दी, अर पछै जद राणौ उदैसिंघ पाछी आंख काढबा लाग्यौ जद कुंमलमेर अर हरमाड़ा में उण सूं भी भिड़बा में पाछ नीं राखी।

इणु भांत राव मालदेव आपरी आखी उमर जुद्धां रा नगारा बजावौ, सिंधूड़ा दूहा दिरावतौ रैयौ नै संवत 1616 में इण संसार में आपरी कीरत पाछै छोड़ नै
अठै सूं विदा होय सुरलोक रौ राह लियौ।
मालदेव रै मरण पर कह्यौ है-
असी सहस अस’बार, सहस मैंगल मैमंतां।
हाजी अली मसंद, दैत राकस देखतां।।
भांगेसर वासरहिं, चडे रिण वदृहि जोड़ै।
फतैखान सारिखा मेछ, भूअ डंडि मरोडै़।।
टहियो पिराक्रम आप बळि, सत दुरिक्ख रक्खी सरणी।
माणी न मल्ल ऊभै मुणिस, सूर मुरद्धर वर तरुणि।।


राजस्थान री सीमा बधाबा वाळौ नै उण री रुखाळ करण वाळौ मारवाड़ री धरती माथै बीजौ अैड़ो प्रतापीक धणी नीं जलमियौ


राजा जी थां जीवै सारा थोक है। थां राठौडां रा धणी हौ। इण वास्तै राड़ सूं निकळ परा जावौ नै जुद्ध री लाज नै भरभार कूंपा पर छोड़ो।
पछै राठौड़ जैतो, राठौड़ कूंपौ, राठौड़ ऊदौ जैतावत, खींवौ ऊदावत, पंचायण करमसोत, जैतसी ऊदावत, जोगौ अखैराजोत, वीदौ भारमलोत, भोजराज पंचायणोत, अखैराज सोनगिरौ, हरपाळ जोधावत आद राव मालदेव रा बतीस उमराव आपरी बीस हजार फौज साथ ले सेरसाह री अस्सी हजार सेना सूं जाय भेटी खायी। पातसाही फौज नै रोदळ नै कण-कण री बखेर दिवी। राव मालदेव रा घना जोधार काम आया। अेक बीजो सौ महाभारत हुवौ। मिनखां, घोड़ां नै हाथियां रा धड़ां, पिंडा, चुळियां, नळियां, मुंडा, कबंधा रा पंजोळ लाग गया। राठौड़ रण सागर नै मचोळ नै काम आया। दिल्ली मंडळ रौ धणी रण रौ चकाबौ देख नै कैयो- अेक मूठी बाजरी रै खातर दिल्ली री सायबी खोइज ही।

राव मालदेव रा जोधारां रै रण रा चित्राम कवीसरां घण कोरिया है। राव अखैराज सोनगरा रै जुद्ध नै धाकड़ कबड्ड़ी री संग्या देवतै थकै कैयौ है-
फुरळंतां फौजांह, ढालां गयंद ढढोळतां।
रमियौ सर रौदांह, धाकड़ कबड्डी धीरउत।।

राठौड़ नगौ भारमलोत तौ सांप्रत काळौ नाग इज हुंतौ। उण री तरवार रौ डंक लागै पछै जीवणौ दूभर, फेर भी वौ दुसमण रूपी गारुड़ी रै बंधाण में नी आयौ-
देव न दांणव दीठ, अरक कहै भड़ अेहवौ।
नगियौ काळौ नाग, गारूड़वां ग्रहिजै नहीं।।
धावां सूंछक नै नगौ रण पड़ियौ, पण जीवतौ बचियौ।


समेळ रौ झगड़ौ मारवाड़ में वड़ी लड़ाई रै नांव सुं ओळखीजै। इण राड़ में राव मालदेव रा घणा जोधार काम आया। पछै सेरसाह समेळ सूं कूचकर मेड़ता अर जोधपुर माथै आयौ। जोधपुर रा किला नै फतै कर पाछौ गयौ। पण मालदेव निचलौ बैठणियौ नीं हौ। सेरसाह रै फोत हुंवतांई पाछौ जोधपुर आय दाबियौ। आप री फौज पाछी बणाई। जुद्ध रा साज सामान, घोड़ा रजपूत सिलह बणाय नै अजमेर पर काटकियौ। अजमेर माथै हाजीखां पठाण राज करै। हाजीखां आपरै बळू मेड़ता रा धणियां अर मेवाड़ रा राणा उदैसिंघ नै बुलायौ। अठी नै प्रथीराज जैतावत नै सेनानायक बणाय राव मालदेव अजमेर माथै फौज मेली। अैड़ै समै में प्रथीराज नै अजमेर पर मोकळती वेळां कैयौ-

पीथा पांणेजेह, आळोजे कहियौ इसौ।
भुइ ताहरे भुजेह, जैत तणा जोधां तणी।।

राव मालदेव विचार करती थकौ कैयौ- हे प्रथीराज जैतावत ! जोधां री औलाद री आ मारवाड़ री भौम थांरै इज भुजपांण माथै है।
एक दळ आहाड़ांह, दळ एक दुरवेसां तणा।
मांही भेड़तियाह, कळि करतां त्रीजोइ कटक।।


अजमेर में प्रथीराज घणौ पराक्रम दिखायौ। राव मालदेव री बात राखी। पछै वि. सं. 1610 में मेड़ता में राव जयमल रै साथ रै जुद्ध में बाज मुवौ। प्रथीराज रै काम आयां पछै राव मालदेव आपरौ सेनापत पणौ प्रथीराज रा छोटा भाई देईदास जैतावत नै सौंपियौ। देईदास राव मालदेव रौ सेनापत बण घणां-घणां धौंकळ किया। सं. 1616 में जाळौर माथै फौजकसी करी। जालौर रा पठाण धणी मलिक बूढण ‘मलिकखां बिहारी नै हराय नै जाळौर नै जोधपुर नीचे घाली। पछै बादसाह अकबर आपरा सेनानायक सरफुदीन हुसैन मिर्जा नै राव जैमल री मदत मेड़ता माथै मेलियौ। देईदास, मेड़तिया जैमल अर उण री पक्ष री बादसाही सेना सूं भिड़ गयौ। महाभयांणक राड़ी हुवौ। घणा लड़ेता खेत रैया। कह्यौ है-

विगतौ करे व्रहास, ढालां मुडै ढोईयौ।
दुसासण दहु चहु दळे, दीठौ देवीदास।।
कळळियौ कविलास, समहर किरमाळां सरस।
जैत समोभ्रम जागियौ, दणियर देवीदारा।।
तूं तेजीयै सपताास, भीड़ै जुध करिबा भणी।
सातै हींसारव हुवै, दीपै देवीदास।।


दुसासण रै समान वीरता प्रगट करतौ देईदास वैरियां रा दळां में ओपियौ। राव जैता रौ कुळोधर देईदास सत्रु सेना रूपी अंधेरा नै नासतौ सूरज री भांत दीखियौ। देईदास रै घोड़ा रै हींसारव री हणहणाट सातौं दीपां में सुणीजी। अैड़ौ पराक्रम धणी देईदास जैतावत राव मालदेव निमत मेड़तै काम आयौ। राजस्थान में राव मालदेव एक अजोड़ राजा हुवौ। दिल्ली रा अफगान नै मुगल पातसाहां री सेना सूं लोह रटाका लिया। मरु देस री सीमावां रो घणौ विस्तार कियौ। रात दिन खेड़-खेटा करतौ थकौ भी कदै निरास नै उदास नीं हुवौ।

राव मालदेव जुद्ध इज नीं लड़िया मारवाड़ में ठौड़-ठौड़ गढ़-कोटां, जीवरखां रा भी घणा निर्माण किया। प्रजा रै खातर कूवा-बावड़ियां खिंणाई। उण री सखरी प्रत पाळणा किवी। जद ई तौ राजस्थान रा ख्यातकारां राव मालदेव नै मंडळीक राजा, हिन्दुवां रौ पातसाह कैय नै चितारियौ है। कवि आसौ बारहठ राव मालदेव रै पुरसारथ रौ वरणन करते थकै कैयौ है-

कवण क्रिसन पति सबळ, काळ पति कवण अंगजित।
प्रिथीपत कंुण बाणपत, सुरपत कवण सतेजति।।
कवण नाथपति जीत, कवण केसवपति दाता।
सीतापति कुण सीत, कवण लखमण पति भ्राता।।
सबळ को अवर सूझै नहीं, जाचिग जंपै सयल जण ।
हिन्दुवां मांहि ओ हिन्दुवौ, मालपति मोटौ कवण।।


इण संसार में अगन सूं बढ नै सबळ कुंण हुवौ है। जमराज रै बिना अगंजित कुंण है। धनखधर अरजण सूं पराक्रम बळी कुंण हुवौ है। देवपति इन्द्र सूं ज्यादा वडौ राजा कुंण है। गोरखनाथ रै सिवाय वडौ जति कुंण हुवौ, भगवान् केसोराय सूं इधकौ दातार कुंण नै सीतामाता जैड़ी सती नै लिछमण सरीखौ भाई बीजौ कुंण हुवौ। इणां रै जोड़ रौ राव मालदेव रै बिना दूजौ कोई हिन्दूपति नीं दीखै।

राव मालदेव गादी बैठा जद फगत दोय पड़गनां रौ धणी ही अर पछै तैतीस पड़गना जीत नै मारवाड़ रा राज रौ बिस्तार कियौ। राव मालदेव जिका-जिका तुंबां पड़गना खाटिया उणा रा ख्यातां बातों में नांववार बखाण मिळे है। सुणीजै-

महि सोजत ली माल, भाल लियौ मेड़तौ।
माल लियौ अजमेर, सीम सांभर सहेतौ।।
बांको गढ़ बदनौर, माल लीधौ दळ मेले।
राइमाल रायपुर लियौ, भाद्राजण भेळे।।
नागौर निहचि चढ़ि नळै, खाटू लीधी खड़ग पणि।
तप पांण हुवौ गांगा तणौ, धींग मालदे सैंधणी।।
लोड लियौ लाडणूं, दुरंग लीधौ डिडवाणौ।
नयर फतैपुर नाम, आप वसि कियौ आपांणौ।।
कमधज लई कासली, रूक बळ लियौ रेवासौ।
चांप लई चाटसू, मुक्यौ वीरभाण मेवासौ।।
जड़ळग पण जाजपुर लियौ, गह छांडे कुंभौ गयौ।
मालदे लियौ मंदारपुर, लियौ टांक टोडो लियौ।।


इता ही इज नीं राव मालदेव सिवाणौ, जाळौर, सांचौर, भीनमाळ, बीकानेर फलोधी, पोकरण, उमरकोट, कोटडा़ै, बाड़मेर, चौहटण आड़ घणा पड़गना जीत नै मारवाड़ रै सामिळ किया।

मेवाड़ रा पासवानिया बणवीर नै चित्तौड़ सूं बारै काढ़ नै राणा उदैसिंघ नै चीतौड़ रौ घणी थरपबा में मदद दी, अर पछै जद राणौ उदैसिंघ पाछी आंख काढबा लाग्यौ जद कुंमलमेर अर हरमाड़ा में उण सूं भी भिड़बा में पाछ नीं राखी।

इणु भांत राव मालदेव आपरी आखी उमर जुद्धां रा नगारा बजावौ, सिंधूड़ा दूहा दिरावतौ रैयौ नै संवत 1616 में इण संसार में आपरी कीरत पाछै छोड़ नै
अठै सूं विदा होय सुरलोक रौ राह लियौ।
मालदेव रै मरण पर कह्यौ है-
असी सहस अस’बार, सहस मैंगल मैमंतां।
हाजी अली मसंद, दैत राकस देखतां।।
भांगेसर वासरहिं, चडे रिण वदृहि जोड़ै।
फतैखान सारिखा मेछ, भूअ डंडि मरोडै़।।
टहियो पिराक्रम आप बळि, सत दुरिक्ख रक्खी सरणी।
माणी न मल्ल ऊभै मुणिस, सूर मुरद्धर वर तरुणि।।


राजस्थान री सीमा बधाबा वाळौ नै उण री रुखाळ करण वाळौ मारवाड़ री धरती माथै बीजौ अैड़ो प्रतापीक धणी नीं जलमियौ

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

औरत के सोलाह श्रंगार

आज आपको औरत के सोलाह श्रृंगार के बारे में बताते हे
औरत के सोलाह श्रंगार और
उनके महत्तव : : :
૧) बिन्दी – सुहागिन स्त्रियां कुमकुमया सिन्दुर
से अपने ललाट पर लाल बिन्दी जरूर लगाती है
और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक
माना जाता है ।
૨) -सिन्दुर – सिन्दुर को स्त्रियों का सुहाग
चिन्ह माना जाता है। विवाह के अवसर पर
पति अपनी पत्नि की मांग में सिंन्दुर भर कर
जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है ।
૩) काजल – काजल आँखों का श्रृंगार है। इससे
आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन
को लोगों की बुरी नजर से भी बचाता है ।
૪) -मेंहन्दी – मेहन्दी के बिना दुल्हन का श्रृंगार
अधूरा माना जाता है। परिवार की सुहागिन
स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में
मेहन्दी रचाती है। नववधू के हाथों में
मेहन्दीजितनी गाढी रचती है, ऐसा माना जाता है
कि उसका पति उतना ही ज्यादा प्यार करता है

૫) -शादी का जोडा – शादी के समय दुल्हन
को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल
जोड़ा पहनाया जाता है ।
૬) -गजरा-दुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित
फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार
कुछ फीकासा लगता है ।
૭) -मांग टीका – मांग के बीचों बीच पहना जाने
वाला यह स्वर्ण आभूषण सिन्दुर के साथ
मिलकर वधू की सुन्दरतामें चार चाँद लगा देता है

૮)-नथ – विवाह के अवसर पर पवित्र अग्निके
चारों ओर सात फेरे लेनेके बाद में देवी पार्वती के
सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।
૯) -कर्ण फूल – कान में जाने वाला यह आभूषण
कई तरह की सुन्दर आकृतियों में होता है, जिसे
चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है।
૧૦) -हार – गले में पहना जाने वाला सोने
या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन
स्त्री के वचन बध्दता का प्रतीक माना जाता है।
वधू के गले में वर व्दारा मंगलसूत्र से उसके
विवाहित होने का संकेत मिलता है ।
૧૧) -बाजूबन्द – कड़े के समान आकृति वाला यह
आभूषण सोने या चान्दी का होताहै। यह बांहो में
पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबन्द
कहा जाता है।
૧૨) -कंगण और चूडिय़ाँ – हिन्दू परिवारों में
सदियों से यह परम्परा चली आ रही है कि सास
अपनी बडी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और
सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ
वही कंगण देती है, जो पहली बार ससुराल आने
पर उसकी सास ने दिए थे। पारम्परिक रूप से
ऐसा माना जाता है किसुहागिन
स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से
भरी रहनी चाहिए।
૧૩) अंगूठी – शादी के पहले सगाई की रस्म में
वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी पहनाने
की परम्परा बहुत पूरानी है। अंगूठी को सदियों से
पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास
का प्रतीक माना जाता रहा है।
૧૪) -कमरबन्द – कमरबन्द कमर में पहना जाने
वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद
पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और
भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबन्द इस बात
का प्रतीक कि नववधू अब अपने नए घर
की स्वामिनी है। कमरबन्द में प्राय: औरतें
चाबियों का गुच्छा लटका कर रखती है।
૧૫) -बिछुआ – पैरें के अंगूठे में रिंगकी तरह पहने
जाने वाले इस आभूषण
को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। पारम्परिक
रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण के
अलावा स्त्रियां कनिष्का को छोडकर
तीनों अंगूलियों में बिछुआ पहनती है।
૧૬) -पायल- पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण
के घुंघरूओं की सुमधुर ध्वनिसे घर के हर सदस्य
को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।
सनातन संस्कृति ही सर्वश्रेष्ठ है….,,
भारत माता की जय,,,, वंदेमातरम्,
सोलह सिंगार….
करवा चौथ सोलह सिंगार कर सजने-संवरने का दिन हैं, पर क्या आप जानती हैं कि सोलह सिंगार होते क्या हैं? परंपराओं को निभाते हुए सिंगार की परंपरा को भी जान ही लिया जाए। पुराने समय में दुल्हन को संवारने के लिए सोलह उपाय किए जाते थे। आप भी सिंगार के इन सोलहा तरीकों को आजमाएं और खूबसूरती निखारें
– मर्दन
खुशबूदार तेल से मालिश करना खूबसूरती पाने की ओर पहला कदम था। पुराने समय में दुल्हन के गुलाब, चमेली या चंदन के तेल की मालिश की जाती थी।
– मंगल स्नानम
नहाने के पानी में दूध मिलाया जाता था। सर्दियों में बादाम के तेल में गुलाब की पंखुडियां तो गर्मियों में खस मिलाया जाता था।
– केशपाश सुगंधी
बालों में शिकाकाई, नागरमोथा, कचरी का पेस्ट बनाकर लगाने के बाद अरीठा से बालों को धोया जाता था।
– अंगराग विलेपन
चंदन के पेस्ट को चेहरे, गर्दन और कंधे पर समान रूप से लगाया जाता था।
– काजल रेख दीपन
माना जाता था कि कि काजल न केवल आंखों की खूबसूरती बढ़ाता है, बल्कि सूर्य की किरणों से आंखों की रक्षा भी करता है।
– तिलक प्रसाधन
बिंदी या मंगल चिह्न बनाए जाने की परंपरा रही है। बिंदी गोरोचना, हरतल, कुंसुंबा आदि से बनती थी।
– मुख प्रसाधन
सोने, चांदी या मोती के बुरादे से चेहरे को निखारा जाता था।
– केश पाश रचना
कुंडलाकार यानी लंबे लंबे रोल वाले बाल या जूडा, सर्पाकृति यानी सांप की आकृति जैसे शायद फ्रेंच रोल टाइप हेअर स्टाल, फोल्डेड स्टाइल जूडे चलन में थे।
– अलाक्ता निवेशन
उन दिनों हर्बल लिपस्टिक ही तैयार होती थी जो मधुमोम में कुसुंबा फूल की पत्तियों को मिलाकर तैयार की जाती थी।
– हस्त सुशोभिताम
हाथों को साफ सुथरा करके सजाया जाता था।
– पाद सुशोभिताम
पांवों को साफ-सुथरा करके आलता लगाया जाता था।
– महा वस्त्र परिधानम
दुल्हन की पोशाक चटख रंगों और सिल्क के वस्त्रों में गोल्ड बॉर्डर का इस्तेमाल होता था।
– पुष्प धारण्म
गजरा, गले में फूलों की माला, फूलों के ही बाजूबंद और कलाई पर भी फूलों की माला को बांधा जाता है।
– अलंकार धारणम
दुल्हन के आभूषणों में कमरबंद, पायल, बाजूबंद और चूडियां। जेवर सोने, चांदी, मोती, शंख और कीमती पत्थरों के होते थे।
– तांबूल सेवनम
दुल्हन को पान खिलाया जाता था।
– दर्पण विलोकन
दुल्हन आईने में खुद को निहारती है और फिर मंडप में दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे की आंखों में देखते थे, इसे शुभ दृष्टि कहा जाता था।

उत्तर भड़ किवाड़ भाटी

उत्तर भड़ किवाड़ भाटी
उत्तर भड़ किंवाड़
काक नदी की पतली धारा किनारों से
विरक्त सी होकर धीरे धीरे सरक रही
थी | आसमान ऊपर चुपचाप पहरा दे रहा
था और नीचे लुद्रवा देश की धरती , जिसेउत्तर भड़ किवाड़ भाटी
आजकल जैसलमेर कहा जाता है , प्रभात
काल में खूंटी तानकर सो रही थी | नदी
के किनारे से कुछ दूरी पर लुद्रवे का
प्राचीन दुर्ग गुमसुम सा खड़ा रावल
देवराज का नाम स्मरण कर रहा था |
'कैसा पराक्रमी वीर था ! अकेला होकर
जिसने बाप का बैर लिया | पंवारों की
धार पर आक्रमण कर आया और यहाँ युक्ति
, साहस और शौर्य से मुझ पर भी अधिकार
कर लिया | साहसी अकेला भी हुआ तो
क्या हुआ ? हाँ ! अकेला भी अथक परिश्रम
,साहस और सत्य निष्ठा से संसार को
अपने वश में कर लेता है ....|
उसका विचार -प्रवाह टूट गया | वृद्ध
राजमाता रावल भोजदेव को पूछ रही है
-
' बेटा गजनी के बादशाह की फौजे अब
कितनी दूर होंगी ?'
' यहाँ से कोस भर दूर मेढ़ों के माल में |'
' और तू चुपचाप बैठा है ?'
' तो क्या करूँ ? मैंने बादशाह को वायदा
किया कि उसके आक्रमण की खबर आबू नहीं
पहुंचाउंगा और बदले में बादशाह ने भी
वायदा किया है कि वह लुद्रवे की धरती
पर लूटमार अथवा आक्रमण नहीं करेगा |'
राजमाता पंवार जी अपने १५-१६
वर्षीय इकलौते पुत्र को हतप्रद सी
होकर एकटक देखने लगी , जैसे उसकी
दृष्टि पूछ रही थी ' क्या तुम विजयराज
लांजा के पुत्र हो ? क्या तुमने मेरा दूध
पिया है ? क्या तुम्ही ने इस छोटी
अवस्था में पचास लड़ाइयाँ जीती है ? '
नहीं ! या तो सत्य झुंट हो गया या फिर
झुंट सत्य का अभिनय कर रहा था |
परन्तु राजमाता की दृष्टि इतने प्रश्नों
को टटोलने के बाद अपने पुत्र भोजदेव से
लौट कर अपने वैधव्य पर आकर अटक गयी
| लुद्रवे का भाग्य पलट गया है अन्यथा
मुझे वैधव्य क्यों देखना पड़ता ? क्या मै
सती होने से इसलिए रोकी गई कि इस
पुत्र को प्रसव करूँ | काश ! आज वे होते
|' सोचते-सोचते राजमाता पंवार जी के
दुर्भाग्य से हरे हुए साहस ने निराश
होकर एक निश्वास डाल दिया |
क्यों माँ, तुम चुप क्यों हो ? क्या मेरी
संधि तुम्हे पसंद नहीं आई ? मैंने लुद्रवे को
लुट से बचा लिया , हजारों देश वासियों
की जान बच गई |'
' आज तक तो बेटा , आन और बात के लिए
जान देना पसंद करना पड़ता था |
तुम्हारे पिताजी को यह पसंद था
इसलिए मुझे भी पसंद करना पड़ता था और
अब वचन चलें जाय पर प्राण नहीं जाय
यह बात तुमने पसंद की है इसलिए
तुम्हारी माँ होने के कारण मुझे भी यह
पसंद करना पड़ेगा | हम स्त्रियों को तो
कोई जहाँ रखे , खुश होकर रहना ही
पड़ता है |'
आगे राजमाता कुछ कहना ही चाहती थी
किन्तु भोजराज ने बाधा देकर पूछा - "
किसकी बात और किसकी आन जा रही है
| मुझे कुछ भी मालूम नहीं है | कुछ बताओ
तो सही माँ ! "
' बेटा ! जब तुम्हारे पिता रावलजी मेरा
पाणिग्रहण करने आबू गए थे तब मेरी माँ
ने उनके ललाट पर दही का तिलक लगाते
हुए कहा था - " जवांई राजा , आप तो
उत्तर के भड़ किंवाड़ भाटी रहना |" तब
तुम्हारे पिता ने यह बात स्वीकारी थी
| आज तुम्हारे पिता की चिता जलकर
शांत ही नहीं हुई कि उसकी उसकी राख
को कुचलता हुआ बादशाह उसी आबू पर
आक्रमण करने जा रहा है और उत्तर का
भड़-किंवाड़ चरमरा कर टुटा नहीं ,
प्राण बचाने की राजनीती में छला
जाकर अपने आप खुल गया | इसी दरवाजे
से निकलती हुई फौजे अब आबू पर आक्रमण
करेंगी तब मेरी माँ सोचेगी कि मेरे जवांई
को १०० वर्ष तो पहले ही पहुँच गए पर
मेरा छोटा सा मासूम दोहिता भी इस
विशाल सेना से युद्ध करता हुआ काम आया
होगा वरना किसकी मजाल है जो
भाटियों के रहते इस दिशा से चढ़कर आ
जावे | परन्तु जब तुम्हारा विवाह
होगा और आबू में निमंत्रण के पीले चावल
पहुंचेंगे , तब उन्हें कितना आश्चर्य होगा
कि हमारा दोहिता तो अभी जिन्दा है
|"
बस बंद करो माँ ! यह पहले ही कह दिया
होता कि पिताजी ने ऐसा वचन दिया है
| पर कोई बात नहीं , भोजदेव प्राण
देकर भी अपनी भूल सुधारने की क्षमता
रखता है | पिता का वचन मै हर कीमत
चुका कर पूरा करूँगा |"
" नहीं बेटा ! तुम्हारे पिता ने तो मेरी
माता को वचन दिया था परन्तु इस
धरती से तुम्हारा जन्म हुआ है और
तुम्हारा जन्म ही उसकी आन रखने का
वचन है | इस नीलाकाश के नीचे तुम बड़े
हुए हो और तुम्हारा बड़ा होना ही इस
गगन से स्वतंत्र्य और स्वच्छ वायु बहाने
का वचन है | तुमने इस सिंहासन पर
बैठकर राज्य सुख और वैभव का भोग भोग
है और यह सिंहासन ही इस देश की
आजादी का , इस देश की शान का , इस
देश की स्त्रियों के सुहाग ,सम्मान और
सतीत्व की सुरक्षा का जीता जागता
जवलंत वचन है | क्या तुम ...............
.........|
' क्षम करो माँ ! मैं शर्मिंदा हूँ | शत्रु
समीप है | तूफानों से अड़ने के लिए मुझे
स्वस्थ रहने दो | मैं भोला हूँ - भूल गया
पर इस जिन्दगी को विधाता की भूल
नहीं बनाना चाहता |'
झन न न न !
रावल भोजदेव ने घंटा बजाकर अपने
चाचा जैसल को बुलाया |
' चाचा जी ! समय कम है | रणक्षेत्र के
लुए में जिन्दगी और वर्चस्व की बाजी
लगानी पड़ेगी | आप बादशाह से मिल
जाईये और मैं आक्रमण करता हूँ | कमजोर
शत्रु पर अवसर पाकर आघात कर , हो सके
तो लुद्रवा का पाट छीन लें अन्यथा
बादशाह से मेरा तो बैर ले ही लेंगे |
जैसल ने इंकार किया , युक्तियाँ भी दी ,
किन्तु भतीजे की युक्ति , साहस और
प्रत्युत्पन्न मति के सामने हथियार डाल
दिए | इधर जैसल ने बादशाह को भोजदेव
के आक्रमण का भेद दिया और उधर कुछ ही
दुरी पर लुद्रवे का नक्कारा सुनाई
दिया |
मुसलमानों ने देखा १५ वर्ष का का एक
छोटा सा बालक बरसात की घटा की
तरह चारों और छा गया है | मदमत्त और
उन्मुक्त -सा होकर वह तलवार चला रहा
था और उसके आगे नर मुंड दौड़ रहे थे |
सोई हुई धरती जाग उठी , काक नदी की
सुखी हुई धारा सजल हो गई , गम सुम खड़े
दुर्ग ने आँखे फाड़ फाड़ कर देखा - उमड़ता
हुआ साकार यौवन अधखिले हुए अरमानों
को मसलता हुआ जा रहा है | देवराज और
विजयराज की आत्माओं ने अंगडाई लेकर
उठते हुए देखा - इतिहास की धरती पर
मिटते हुए उनके चरण चिन्ह एक बार फिर
उभर आए है और उनके मुंह से बरबस निकल
पड़ा - वाह रे भोज , वाह !
दो दिन घडी चढ़ते चढ़ते बादशाह की
पन्द्रह हजार फ़ौज में त्राहि त्राहि
मच गई | उस त्राहि त्राहि के बीच
रणक्षेत्र में भोजदेव का बिना सिर का
शरीर लड़ते लड़ते थक कर सो गया - देश
का एक कर्तव्य निष्ठ सतर्क प्रहरी
सदा के लिए सो गया | भोजदेव सो गया
, उसकी उठती हुई जवानी के उमड़ते हुए
अरमान सो गए , उसकी वह शानदार
जिन्दगी सो गई किन्तु आन नहीं सोई |
वह अब भी जाग रही है |
जैसल ने भी कर्तव्य की शेष कृति को पूरा
किया | बादशाह को धोखा हुआ | उसने
दुतरफी और करारी मात खाई | आबू लुटने
के उसके अरमान धूल धूसरित हो गए |
सजधज कर दुबारा तैयारी के साथ आकर
जैसल से बदला लेने के लिए वह अपने देश
लौट पड़ा और जैसल ने भी उसके स्वागत के
लिए एक नए और सुद्रढ़ दुर्ग को खड़ा कर
दिया जिसका नाम दिया - जैसलमेर ! इस
दुर्ग को याद है कि इस पर और कई लोग
चढ़कर आये है पर वह कभी लौटकर नहीं
आया जिसे जैसल और भोजदेव ने हराया |
आज भी यह दुर्ग खड़ा हुआ मन ही मन "
उत्तर भड़ किंवाड़ भाटी " के मन्त्र का
जाप कर रहा है |
आज भी यह इस बात का साक्षी है कि
जिन्हें आज देशद्रोही कहा जाता है , वे
ही इस देश के कभी एक मात्र रक्षक थे |
जिनसे आज बिना रक्त की एक बूंद बहाए
ही राज्य , जागीर , भूमि और सर्वस्व
छीन लिया गया है , एक मात्र वे ही
उनकी रक्षा के लिए खून ही नहीं ,
सर्वस्व तक को बहा देने वाले थे | जिन्हें
आज शोषक , सामंत या सांपों की औलाद
कहा जाता है वही एक दिन जगत के
पोषक, सेवक और रक्षक थे | जिन्हें आज
अध्यापकों से बढ़कर नौकरी नहीं मिलती
, जिनके पास सिर छिपाने के लिए अपनी
कहलाने वाली दो बीघा जमीन नसीब
नहीं होती , जिनके भाग्य आज
राजनीतिज्ञों की चापलूसी पर आधारित
होकर कभी इधर और कभी उधर डोला
करते है , वे एक दिन न केवल अपने भाग्य के
स्वयं विधाता ही थे बल्कि इस देश के भी
वही भाग्य विधाता थे | जिन्हें आज
बेईमान , ठग और जालिम कहा जाता है वे
भी एक दिन इंसान कहलाते थे | इस भूमि
के स्वामित्व के लिए आज जिनके हृदय में
अनुराग के समस्त स्रोत क्षुब्ध हो गए है
वही एक दिन इस भूमि के लिए क्या नहीं
करते थे |
लुद्रवे का दुर्ग मिट गया है जैसलमेर का
दुर्ग जीर्ण हो गया है , यह धरती भी
जीर्ण हो जाएगी पर वे कहानियां कभी
जीर्ण नहीं होगी जिन्हें बनाने के लिए
कौम के कुशल कारीगरों ने अपने खून का
गारा बनाकर लीपा है और वे कहानियां
अब भी मुझे व्यंग्य करती हुई कहती है -
एक तुम भी क्षत्रिय हो और एक वे भी
क्षत्रिय थे |
चित्रपट चल रहा था दृश्य बदलते जा रहे
थे |
स्व. श्री तन सिंह जी , बाड़मेर

गोरबंद और रमझोलो

धरती तूं संभागणी ,(थारै) इंद्र जेहड़ो भरतार।
पैरण लीला कांचुवा , ओढ़ण मेघ मलार।।
रंग आज आणन्द घणा, आज सुरंगी नेह।
सखी अमिठो गोठ में , दूधे बूठा मह।।

गोरबंद और रमझोलो से झमक झमक करते हुए ऊँटों और घोड़ों वाली वह बारात जा रही थी , सूखे मरुस्थल की मन्दाकिनी प्रवाहित करती हुई , आनंद और मंगल से ठिठोली करती हुई । परन्तु कौन जनता था कि उस सजी सजाई बारात का वह अलबेला दूल्हा एक दिन जन जन के हृदय का पूज्  देवता बनेगा ?

नमक का हक अदा करने के लिए उस ने जान दे दी

रंग रामा रंग लिछमणा, दसरथ रा कवंराह !
भुज रावण रा भांजिया, आलीजा भँवरा !१!
रंग रामा रंग लिछमणा, दसरथ रा पूतांह  !
लंक लुटाई सोहणी, रंग बां रजपूतांह !२!
कर्ण खयंकर लंक रा, जीत भयंकर जंग !
रघुवर किंकर आपने, रंग हो हणुवनत रंग !३!
सज टोला सबळ, नाग बहोला नीह !
अमलां बेली आपने, भोला रंग भुतीह !४!
धमके पांवा घुघरा, पलकै तेल शरीर !
अमलां बेलां आपने, रंग हो भैरव वीर !५!
तो सरणे ब्रन खटतणी ,लोवाड़ वाली लाज !
आवड करणी आपने ,रंग अधका महराज !६!,
पापी कंस पछाडियो , तिकण कियो जग तंग !
अवनि भार उतरता ,रंग हो गोविन्द रंग !७!
विजय विजय तोसूं बणी,जुड़तां भारत जंग !
बाढ़ खलां बरंग ,रंग हो गोविन्द रंग  !८!
करियो अकर्त कैरवां,चीर बढायो चंग  !
सरम राखी द्रुपद सुता ,रंग हो गोविन्द रंग !९!
करयो नहं उण दिन किसन, भीसम रो प्रण भंग !
तजि प्रतिज्ञा आप तणी, रंग हो गोविन्द रंग !१०!
रंग अणिरा भादरा ,टणका आगल टंग !
खागां सामा सिर पड़े , राजपूतां ने रंग !११!
साहस कर जुटे समर ,तुरी चचटे तंग !
टुट्टे सिर गढ़ नह टुट्टे ,बां राजपूतां ने रंग !१२!
फूटे गोला फिन्फारा , टूटे तुरीयं तंग !
संग लडियो सुल्तान रे , उन रुपवत ने रंग !१३!
रुपावत खेत सिंह राठौर निमाज ठाकुर सुल्तान के साथ जोधपुर की सेना से लड़ कर मारा गया था .(यह वाकिया बहुत ही रोम्चक ही नही बल्कि राजपूत चरित्र की  बेजोड़ मिसाल है. इस गरीब राजपूत ने निमाज हवेली में रात बिताई थी उन के  रसोवाड़े में खाना खाया था ,नमक का हक अदा करने के लिए उस ने जान दे दी ।

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़,

मांणक सूं मूंगी घणी जुडै न हीरां जोड़,
पन्नौं न पावै पांतने रज थारी चित्तौड़ !!
आवै न सोनौं ऒळ म्हं हुवे न चांदी होड़,
रगत धाप मूंघी रही माटी गढ़ चित्तोड़ !!
दान जगन तप तेज हूं बाजिया तीर्थ बहोड़,
तूं तीरथ तेगां तणौ बलिदानी चित्तोड़ !!
बड़तां पाड़ळ पोळ में मम् झुकियौ माथोह,
चित्रांगद रा चित्रगढ़ नम् नम् करुं नमोह !!
जठै झड़या जयमल कला छतरी छतरां मोड़,
कमधज कट बणिया कमंध गढ थारै चित्तोड़ !!
गढला भारत देस रा जुडै न थारी जोड़,
इक चित्तोड़ थां उपरां गढळा वारुं क्रोड़ !!

जद मेह अंधेरी राता मे टुटेडी ढाण्या चुती हि।

जद मेह अंधेरी राता मे टुटेडी ढाण्या चुती हि।
तो मारु रा रंग-मेहला मे दारु रि जाजम ढलती ही।
जद बा उनाला कि लुवा मे करसे री काया जलति हि,
तो छेल-भँवर रे चौबारे चौपङ रि जाजम ढलति हि।
पण करसे रि रक्षा खातर,
पण करसे रि रक्षा खातर,
सिस तलवार पर तोलणो पङतो।
धरती तने बोलनो पङतो।
धरती तने बोलनो पङतो।
बा राजस्थानी भाषा है ।।
जद-जद भारत मे था सता-जोग, आफत रि आँन्धी आयी हि,
बक्तर रि कङिया बङकि हि जद, सिन्धु राग सुनायी हि ।।
गङ गङिया तोपा रा गोला, भाला रि अणिया भलकि हि।
जोधा री धारा रक्ता ही, धारा रातम्बर रळकी ही ।
अङवङता घोङा उलहङता, रङवङता माथा रण खेता ।
सिर कटिया सुरा समहर मे, ढाला-तलवारा ले ढलता ।
रणबँका राठौङ भिङे, कि देखे भाल तमाशा है ।
उण बकत हुवे ललकार अठे, बा राजस्थानी भाषा है ।।

सूर्य चमकता रजपुतो का,

हरवळ भालां हाँकिया ,पिसण फिफ्फरा फौड़ ।
विडद जिणारौ वरणियौ, रण बंका राठौड़ ॥
किरची किरची किरकिया, ठौड़ ठौड़ रण ठौड़ !
मरुकण बण चावळ मरद, रण रचिया राठौड़ ॥
पतसाहाँ दळ पाधरा, मुरधर धर का मौड़।
फणधर जेम फुंकारिया, रण बंका राठौड़ ॥
सिर झड़ियां जुडिया समर, धूमै रण चढ़ घौड़ !
जोधा कमधज जाणिया, रण बंका राठौड़ ॥
सातां पुरखाँ री सदा, ठावी रहै न ठौड़ !
साहाँ रा मन संकिया, रण संकै राठौड़ ॥
हाको सुण हरखावणो, आरण आप अरौड़ !
रण परवाड़ा रावळा, रण बंका राठौड़ ॥
                  -गंगासिंह भायल मूठली ।
सूर्य चमकता रजपुतो का,
सूर्य चमकता रजपुतो का, घनघोर बदरिया डरती थी !
था शेर गरजता सीमाओ पर, बिजली भी आहे भरती थी !!
है खून वही उन नब्जों मे, फिर क्यो वर्षो से सोते हो !
लूटा है चंद सियारो ने, फिर क्यो इन्हे मौका देते हो !!
अब चीर दो सीना काफिर के, तलवार वही पुरानी है !
रक्षक हो तुम इस भारत के, ललकार रही भवानी है !!
                   -गंगासिंह भायल मूठली ।
नावं सुण्या सुख उपजै !
नावं सुण्या सुख उपजै हिवड़े हरख अपार ।
इस्यो मरुधर देश में घणी करे मनवार ।।
मरुधर सावण सोवणो बरस मुसलधार ।
मरवण ऊबी खेत में गावे राग मल्हार||
सोनल वरणा धोरिया मीसरी मघरा बैर ।
बाजरी की सौरभ गमकै ले - ले मरुधर ल्हैर ।।
पल में निकले तावड़ो पल में ठंडी छांह ।
इस्या मरुधर देश में खेजड़ल्या री छांह ।।
मरुधर साँझ सुहावणी बाजै झीणी बाळ ।
बालक घैरै बाछडिया गायां लार गुवाल ।।
रिमझिम बरसे भादवो छतरी ताने मौर ।
मरुधर म्हारो सोवणों सगला रो सिरमौर ।।
झुमै फाग में गूंजे राग धमाल ।
घूमर घालै गोरड्या उड़े रंग गुलाल ।।
देसी राजपूत की देसी सोच ।
            -गंगासिंह भायल मूठली ।
ढ़ चितौड़
गढ़ चितौड़ गढ़ जालोर गढ़ कुंभलमेर ।
जैसलदे चणायो भाटीयों जग मे जैसलमेर ॥
गढ़ तणोट गढ़ मांडव गढ़ सांगानेर ।
महारावल चणायों भाटीयों भल गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ विजणोट गढ़ अर्बद देखो गढ़ अजमेर !
सोने रुपे झगमगे जग मे गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ बुंदी गढ़ मंडोवर महा गढ़ आमेर ।
मरुधरा गुणवंत गढ़ जैसलमेर ॥
गढ़ महेरान गढ़ नागोर खेड़गढ़ बाड़मेर ।
माड़ धरा महीपति जहाँ गढ़ जैसलमेर ॥
                 -गंगासिंह भायल मूठली ।