बुधवार, 31 अगस्त 2016

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 

हरसावै मुखढ़ा गीतां का, रागां मांय रवानी। 
हियै-कालजै ही थाह टपकै, गीत घणा उममानी।। 
गीता आत्मा गीत धरोहर, गीत भावना जन की। 
गीतां में मरुजीवन मुलकै, गीत कथा मरुमन की।। 
ऊंच चढ़ै पातलियो ढोलो, मारू मन की थाती। 
मन की उपज निपज गीतड़ला, वाह भई मालाणी

कुरजा, लैर्यो, लूर पीपली, पीलो चंग धमाल। 
मुरलो, मूमल, हंजामारू, रस का गीत कमाल। 
रखड़ी-जकड़ी, बिणजारो, रामू-चनणा का बोल। 
सगी-सगा सै करै ठिठोली, ऐ तो मिलै न मोल।। 
पीढ़ा घाल'र लगै सीठणा, गीतां की परिपाटी। 
साल्यां छेड़ करै जीजा सै, वाह भई मालाणी

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