देख आज मेवाड़ मही को आड़ावल की चोटी नीली,
उसकी बीती बात याद कर आज हमारी आंखें गीली ।
जिसके पत्थर-पत्थर में थी जय नादों को ध्वनि टकराई,
जहाँ कभी पनपा था जीवन वहाँ मरण की छाया छाई,
अरे तुम्हारी गोदी में ही भला पली क्या मीरां बाई?
क्या प्रताप था तेरा बेटा तू ही उस की प्यारी माई?
स्वयं वही तू, बतलाती है चारण की वह पोथी पीली,
गत गौरव की कथा याद कर आज हमारी आंखें गीली ।
घाटी-घाटी फिरा भटकता गहन विजन में डाले डेरे उस प्रताप ने सब कुछ सहकर गये तुम्हारे दिन थे फेरे,
पर तू ऐसी हीन हुई क्यों कहाँ आज वे वैभव तेरे? बदल गई है तू ही या तो बदल गये मां साँझ-सबेरे?
आज हमारा शोणित ठंडा आज हमारी नस-नस ढीली,
गत गौरव की कथा याद कर आज हमारी आंखें गीली,
यहाँ जली जौहर की ज्वाला नभ तक जिसकी लपटें फैली जो कल तक था धर्म हमारा आज हमारे लिये पहेली,
यहीं रूप की रानी पद्मा अग्नि शिखा से पुलकित खेली आज विश्व के इतिहासों में अपने जैसी वही अकेली,
जहाँ रक्त की धार बही थी आज वहाँ की धरती पीली,
गत गौरव की बात याद कर आज हमारी आँखें गीली,
मूक खड़ा चितौड़ बिचारा अन्तिम सांसें तोड़ रहा है,
गत गौरव का प्रेत शून्य में टूटे सपने जोड़ रहा है ।
अपने घायल अरमानों को अंगड़ाई ले मोड़ रहा है,
सांय-सांय कर उष्ण हवा मिस उर की आहें छोड़ रहा है,
फिर भी तो मेवाड़ी सोया पी ली उस ने सुरा नशीली,
गत गौरव की बात याद कर आज हमारी आँखें गीली ।
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