गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

दारूरा दुरगण

पिण्ड झड़े, रोबा पड़े, पड़िया सड़े पेंशाब।
जीब अड़े पग लडथड़े, साजन छोड़ शराब (१)
कॉण रहे नह कायदो, आण रहे नह आब।
(जे) राण बाण नित रेवणो,(तो) साथी छोड शराब (२)
जमीं साख जाति रहे, ख्याति हुवे खराब।
मुख न्याति रा मोड़ले, साथी छोड़ शराब (३)
परणी निरखे पीवने, दॉत आंगली दाब।
भॉत भॉत मांख्यां भमे, साजन छोड़ शराब (४)
आमद सू करणो इधक, खरचो घणो खराब ।
सदपुरखॉ री सीखहे, साथी छोड़ शराब (५)
सरदा घटे शरीर री, करे न गुरदा काम।
परदा हट जावे परा, आसव छोड़ अलाम (६)
कहे सन्त अर ग्रंथ सब, निष्चय धरम निचोड़ ।
जे सुख चावे जीवणो, (तो) छाक पीवणो छोड़ (७)
मोनो अरजी रे मनां, मत कर झोड़ झकाळ।
छाक पीवणी छोड़दे, बोतल रो मुॅहबाळ (८)
चंवरी जद कंवरी चढी, खूब बणाया ख्वाब ।
ख्वाब मिळगया खाक मे, पीपी छाक शराब (९)
घर मोंही तोटो घणों, रांधण मिळे न राब।
बिलखे टाबर बापड़ा, साजन छोड़ शराब (१0)
दारू में दुरगण घणा , लेसमात्र नह लाब ।
जग में परतख जोयलो , साथी छोड़ शराब (११)

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