वे बेडु री पड़ेरिया कठै...
जीणरे माथे घड़ा धरता..
वे घरा री पोलो कठै..
जीणमेँ दाता सा बिराजता..
वे भीत री खुँटिया कठै...
जीणमेँ माणी कृपाण टंगती.
वे पुराणा खाड़ा कठै...
जे दाता ऊ पोता तक चालता
वो रोटी रो हवाद कठै...
जा.. चुला आगे बैन खाता..
वो गाँव रो प्रेम कठैँ...
जो एक दूजा रे काम आवता....
बखत गयो वस्या मनक गय़ा
मिलता न ढ़ुढ़ता वस्या...
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कुँवर लहरसिंह देवड़ा
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